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________________ ४ अंन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ इसका प्रथं पं. दीपचन्द पाण्डया ने इस प्रकार दिया है- मूली आदि हरे जमोकद, नाली (कमल प्याज अद की नाली मिरा- व.मल की जड़, लहसुण, नुम्बो शाक (लोकी शाक १) करड कसभी की भाजी । कलिंग सावजा १) मरण कन्द प्राधि कन्द, पुष्प हरे फूल, सब प्रकार का अनाज (बहुत दिनों का बना पाचार मुरब्बा) इनवनिश दर्शन भंग होता है । इसमें नुम्बी शाक मामथं लोकी (घोया) दिया गया है । लोकी को कहीं भी मभक्ष पदार्थो नही मिनाया गया। सम्भव है ग्रन्थकार का इससे कोई दूसरा ही अभिप्राय हो, क्योंकि लोको जिरी पिया भी कहा जाता है, वह अभक्ष नहीं है इसी तरह सेम की फली भी अभक्ष नहीं है। ग्रंप की तुलना पर से स्पष्ट है कि प्रस्तुत रचना 40 प्राशाघर के बाद का है । सम्वृान भाव संग्रह के कर्ता बामदेव या इद्र वामदेव के गुरु लक्ष्मी चन्द्र थे। पर इनके सम्बन्ध में अन्य कोई जानकारी प्राप नया साधय धम्म दोहा का वार्ता १६वीं शताब्दी के लक्ष्मीचन्द का नहीं माना, उसका कारण बहा अनमागर द्वारा सावयधम्म दोहा के पया का उद्धन करना है। प्रतः लक्ष्मीचन्द्र १६वीं शताब्दी के नहीं हो सकी। उन्होंने उसे पर्ववत बतलाया है' । मेरी राय में यह ग्रन्थ १४वीं शताब्दी या उसके पास-पास को रचना हानी चाहिये । प० दागचन्द पागच्या सावधधम्म दोहा का रचना काल विक्रम की १६वीं शताब्दी का प्रथम चरण बतलाया है। अतः विधायक प्रमाणों के अाधार पर लक्ष्मीचन्द का समय निश्चित करना जरूरी है, प्राशा है विद्वान इस और अपना ध्यान दग। . महानुप्रेक्षा में ४० दोहा है, उनमें कवि ने अपना नाम उल्लिखित नहीं किया, किन्तु सूची में उसका कर्ता 'लभ चन्द्र लिखा । यह दोहा नुत्यांक्षा अनेकान्त वर्ष १२ १०वी किरण MATA है। कहा तुम्हः प्रौर प्रत्येक भावना के स्वरूप क विवंचक है। सावय धम्म दोहा से अनुप्रक्षा के दोहा अधिक सुन्दर व्यारवान जान पड़न पर रचाई वाल और रचना स्थल तथा लेखक के नाम से रहित होने के कारण उस पर विशेष विचार करना शक्य नहीं है । साथ ही यह निर्णय भी वांछनीय है कि दोनों के कतां एक ही हैं; या भिन्न-भिन्न । कवि हल्ल या हरिचन्द मलसंध, बलात्कारगण और सरस्वती गच्छ के भटटारक प्रभाचन्द्र के प्रशिष्य प्रौर भट्टारक पद्मनन्दी क शिष्य थे। अच्छे विद्वान और कवि थे इनकी दो कृतियां उपलब्ध है । श्रेणिक चरिउ या वड्हमाणकध्व और माहलणाहकन्छ । कता ने रचनाकाल नही दिया ।।फर भी अन्य साधनों से कवि का समय विक्रमी को चों शताब्दी है। रचनाएं श्रेणिक चरित या वर्द्धमानकाव्य में ११ संधियां हैं, जिनमें अंतिम नीर्थकर वद्ध मान का जीवन परिचय नकल कया गया है । कवि ने यह ग्रन्थ देव राय के पुत्र 'होलियम्म' के लिये बनाया है। गाय ही उनके समकालान हान बाल मगध सम्नाट बिम्बसार याणि क की जीवन गाथा भी दी हुई है । यह गजा बड़ा मनापी और राजनीत में कमल था । इसके सेनापति अंटि जब कुमार थे । इस राजा की पट्ट महिषी रानी चलना थो, जो बंगाली गणतंत्र फै अध्यक्ष लिच्छवि राजा चेटक को विदुपी पुत्री थी। जो जैन धर्म संपालिका और पतिव्रता थी । श्रेणिक प्रारम्भ में अन्य धर्म का पालक था, किन्तु चेलना के सहयोग से दिगम्बर जैन धर्म का भक्त और भगवान महावीर को सभा या प्रमुग्न श्रीता हो गया था। प्रस्तुत ग्रन्थ देवराय के पुत्र रांधाधि पहोलिबम्म के अनुरोध में रचा गया है। और गाय का स० १५५० लिखी हुई प्रति वधो चन्द्र मंदिर जयपुर के शास्त्र भंडार में मौजूद है। १. यह लक्ष नारद सागर के समकालीन लक्ष्मीचन्द्र से जुदे हैं। परमात्म प्रकाश पनावना गृ० १११ २. ग्रन्थकार का नाम लक्ष्मीनन्द है और उनका समप ग्रन्थ को उपलब्ध नियों और प्राप्त निहामिक प्रमागणी के माधार पर विक्रम को १६वी शताब्दी का प्रथम त्राण रहा है। सावय धम्म दोहा, सम्पादकीय ०१२ गरि पदमा पंप पना:य च उवग्मा राशिणयअभय चरिते विरइस जगमित्तहमान बयानो भविगण जण मण माहिद हालियापणासम्म नए शिवाय गमगोगामारहमो सधि परिचंद्रमी समना ।।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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