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________________ १५वी १६वौं १७वीं और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि ४६२ रास ६. शान्तिनाथ फागु ७. धर्म वाणी ८. पूजा गीत ६. णमोकार गोतडी १०, जन्माभिषेक धूल ११. भवभ्रमण गीत १२, चउनोसतीर्थकर कामु १३. सारशिखामण रास १४, चारित्रगीत १५. इंद्रिय संवर गीत ग्रादि। रचनाए' सामने न होने से इनका परिचय नहीं दिया जा रहा । ग्रन्थों के नाम सूचियों पर से दिये गये हैं 1 अवकाश मिलने पर फिर कभी इनका परिचय लिखा जायगा । मुलाचार प्रदीप में भी रचना काल नहीं है किन्तु , बडाली के चातुर्मास में लिखी गई एक गुजराती कविता में मलाचार प्रदीप के रचे जाने का उल्लेख किया गया है। इसकी रचना उन्होंने लघभ्राता जिन दास के अन्ग्रह से की गई थी, उसका समय मं० १४८१ दिया गया है। "तिहि अवसरे गरु प्राविया यडाली नगर मझार रे। चातुर्मास तिहाफरो शोमनो, श्रावक कीषा हर्ष प्रपार रे। प्रमीझरे पधरायिथा वधाई पावे नरनार रे। सकल संघ मिलके दया कीन्या जय-जयकार रे । - -. ..... चौदह सौ इक्यासी भला , श्रावणमास लसंत रे । प्रतिमा विजापूर ग णाचा गरे । भ्रातामा अनुग्रह थकी, कीधा ग्रन्थ महानरे।" भ. सकसकीति ने १५ वीं शताब्दी में राजस्थान और गुजरात में विहार कर जनता में धार्मिक रुचि जागत की, उन्हें जनधर्म का परिज्ञान कराया, और प्रवचनों द्वारा उनके अज्ञान मल को धोया। उन्हीं का अनमरण उनके लघ भ्राता ब्रह्म जिनदास ने किया। उसके बाद उनकी शिष्य परम्परा में वही क्रम चलता रहा। संवत १४८२ में डंगर पुर में दीक्षा महोत्सव सम्पन्न किया" । संवत १४९२ व गलिया कोट में भटटारक गट्टी की स्थापना की और अपने को बलात्कारगण और सरस्वती गच्छ का भद्दारक घोषित किया। -- - -- समय बिचार एक पदटावली में भट्टारक सकलकीर्ति का जीवन ५६ वर्ष का बतलाया है। संवत् १४६ में महसाना में वे दिवंगत हए । वहां उनकी निषधि भी बनी हुई है। सकलकीति का जन्म सं० १४४३ में हमा। १४ वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हुमा । और १२ वर्ष बे गृहस्थी में रहे । २६ वर्ष की अवस्था में सं० १४६६ में घर से नणया जाकर भ. परन्दी से दीक्षा लेकर पाठ वर्ष तक उनके पास रहकर, न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त, काव्य छन्द अलंकार ग्रादि का अध्ययन कर पैदुष्य प्राप्त किया । सकल कीर्ति रास में भूल से 'चउद उनहत्तर' के स्थान पर 'चउद सठि पदा गया या लिखा गया, जो गलत है. उससे उनके समय सम्बन्ध में विवाद उठ खड़ा हुमा। वे सं०१४७७ में चौनीम की प्राइस्था में बागड़ गजरात के ग्राम खोडणे में प्राये, और यहाँ शाह पोचा के गृह में पाहार लिया। पश्चान व पर्यन्त विविध स्थानों में भ्रमण किया। अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ बनाये । मन्दिर-मति-निर्वाण एवं प्रतिपादि कार्य सम्पन्न किये और अन्त में ५६ वर्ष की अवस्था में सं० १४९६ में स्वर्गवासी हए। डा ज्योति प्रसाद जी सकलकीति का जीवन ८१ वर्ष का स्वीकार करते हैं जो ठीक नहीं जान पडता डा विद्याधर जोहरापुर कर ने भट्टारक सम्प्रदाय में सकलकीति का समय सं० १४५० से १५१० तक का दिया है. जिसका उन्होंने कोई आधार नहीं बतलाया । उक्त दोनों विद्वानों द्वारा बतलाया समय पटटावलीकममय रेल नहीं खाता । आशा है दोनों विद्वान अपने बतलाये समय पर पुनः विचार करेंगे। १. चउदह अब्यासीय संवति कुल दीपक नरपाल संवपति । डूगरपुर दीक्षा महोच्छव तीणि रियाग। श्री सकलकीनि सह गुरु सुकरि, दीषी दीक्षा आणंदरि-जय जयकार मयल चराचरु ए। -मालकीति स
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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