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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
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पुराने मकान के पास एक साथ बैठा है जिसके पास एक काका ने कहा कोई माथी साया होगा, यह कह कर वह वहाँ गई और उन्हें 'नमोस्तु' कहकर नमस्कार किया तीन प्रदक्षिणा दी, तब साथ ने धर्म वृद्धिरूपाशीर्वाद दिया और वे नगर में आये पाना भान के घर उन्होंने आहार लिया। मलकीर्ति ने वागड प्रान्त के छोटे बड़े नगरों में विहार किया, जनता को धर्ममार्ग का उपदेश दिया, उन्हें जैन धर्म का परिचय दिया और जनसमूह में आये हुए धार्मिक थित्य को दूर किया और जैनधर्म की ज्योति को चमकाने का उद्योग किया। सं० १४७७ से १४६६ तक के २२ बाईस वर्षीय काल में मुनि ने न्य रचना, जिन मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा आदि प्रशस्त कार्यों द्वारा जैन धर्म का प्रसार किया। इसका इति वृत्त सहज ही ज्ञात हो जाता है।
प्रतिष्ठाकार्य
कितनी प्रतिष्ठाएं सम्पन्न कराई। इसका निश्चित प्रमाण बतलाना कठिन है। जब तक सभी स्थानों के मूर्ति लेख संग्रह नहीं किये जाते, तब तक उक्त प्रश्न का सही उत्तर देना संभव नहीं जंचता। मेरी नोट चुक में प्रतिष्ठाओं के मनिले विद्यमान है मं० १४००, १४६०, १४६२. १४६६ १४६७ और १४९ के है। इनमें सं० १४८० का और १४६६ के लेख सुनि कांतिसागर की डायरी तथा हरिसागर के संग्रह के ताम्वरीय मंदिरों में प्रतिष्टित दिगम्बर मूर्तियों के है, शेष चारों देश उदयपुर, डूंगपुर, सूरत, जयपुर में प्रतिष्ठित मूर्तियों के हैं। उस काल अनेक प्रतिष्ठित संपतियों ने उनके प्रतिष्ठाओं में सहयोग दिया था। गलियाकोट में स० १४६२ में एकपति गुलराज ने विवासि जिनबिम्ब की स्थापना कराई थी। नागद्रह में संघपति ठाकुरसिह ने विश्व प्रतिष्ठित में योग दिया था।
सकलकीति रास में उनकी कुछ रचनाओं का उल्लेख किया गया है। ग्रन्थ भंडारों में उनकी जो कृतियां उप अहूँ। उनमें से किसी में भी उन्होंने रचना काम नहीं दिया सकलकोति को सभी रचनाए सुन्दर है। हां काव्य को दृष्टि से उनमें रसझलंकार आदि का विशेष वर्णन नहीं है। सीधे सादे पदों में कथानक या चरित दिया है। यद्यपि उनमें पूर्ववर्ती ग्रन्थों से कोई खास वैशिष्ट्य नहीं है किन्तु रचना संक्षिप्त और सरल है। उनके सभी ग्रन्थ हुआ प्रकाशन के योग्य है।
संस्कृत रचनाएं
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१. प्रादिपुराण (वृषभनाथ चरिन) २. उत्तर पुराण, ३. शांतिनाथ पुराण ४. पाश्वं पुराण ५. वर्धमान पुराण ६. मल्लिनाथ चरित्र ७. यशोधर चरित्र 5 धन्यकुमार नरित्र . सुकमाल चरित्र १० सुदर्शन चरित्र ११. जम्बु स्वामि चरित्र १२. श्रीपाल चरित्र १३. मुलाचार प्रदीप १४. सिद्धान्तसार दीपक १५. पुराणसार संग्रह १६. तत्त्वार्थसार दीपक १७ आगमसार १८. समाधिमरणोत्साह दीपक १६ सारचतुविशतिका २० द्वादशानुप्रेक्षा २१. कर्म विपाक २२. अनन्त व्रत पूजोथापन २३. अष्टाङ्गिक पूजा २४. सोलह कारण पूजा २५ गमवर वलय पूजा २६. पंच परमेष्ठी पूजा २७. परमात्मराज स्तोत्र ।
राजस्थानी गुजराती रचनाए
१. माराधना प्रति बोधसार २. कर्म चूरव्रतवेति ३. पार्श्वनाथाष्टक ४. मुक्तावलि गीत ५. सोलह कारण
१.०१४६० सुदी १ शनी भी मूल नन्दिवेकर सरस्वती बच्चे भी कुकुदा मी श्री शुभचन्द्र तस्य [गुरु] भ्राता जयतमय विपात मुनि श्री कति उपदेशान् शातीय नरवद आर्या बला तयोः पुत्राः ठा० देवपाल, अर्जुन, भीम्मं कृपा चासरण चांपा काटा श्री आदिनाथ प्रतिमेयं (सूरत) / २. [सं० १४६० मूलसंबे श्री सकलकीति व ज्ञातीय शाह कर्ण भार्या भोली सुना सोभा भ्रात्रा मोटी भार्या पासी आदिनाथं प्रणमति ।