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१५ १६ १७ और १६वीं शताब्दी के आचार्य भट्टारक और कवि
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साहू दासावर अपने धर्म का साधन करते हुए जीवन यापन करते थे। कवि ने उनका सूत्र गुणवान किया है। भट्टारक पद्मनन्दि मे भावकावार सारोद्वार नाम का ग्रन्थ भी दातार के लिये बनाया था।
संधियों में पाये जाने वाले पद्य में कवि ने सूचित किया है कि राजा अनयचन्द्र ने अन्तिम जीवन में राज्य का भार रामचन्द्र को देकर स्वर्ग प्राप्त किया । सं० १४५४ में रामचन्द्र ने राज्य पद प्राप्त किया था। जो राज्य कार्य में दक्ष और कर्तव्य परायण था। इस तरह यह रचना महत्वपूर्ण और प्रकाशित
के योग्य है।
म० सकलकीति इनका जन्म संवत १४४३ में थी, जो गुजरात को एक
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मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगण के मट्टारक पचन के हुआ था। इनके माता-पिता 'अहिलपुर पट्टण' के निवासी थे। इनकी जाति प्रतिष्ठित जाति है। इस जाति में अनेक प्रसिद्ध पुरुष और दानी धावक-धाविकाएं तथा राजमान्य व्यक्ति हुए हैं। इनके पिता का नाम 'करमसिंह और माता का नाम 'शोभा' था इनको वाल्यावस्था का नाम पूर्णसिंह था। जन्मकाल से ही यह होनहार तथा कुशा बुद्धि मे पिता ने पांच वर्ष को बाल्यावस्था में इन्हें विद्यारम्भ करा दिया था, पर थोडं ही समय में इन्होंने उसे पूर्ण कर लिया था पूर्णसिंह का मन स्वभावतः यक्ति को घोर रहता था | चौदह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हो गया था । किन्तु इनका मन सांसारिक विषयों को और नहीं था। यतः वे पर में उदासीन भाव से रहते थे माता-पिता ने इनकी उदासीन वृति देखकर इन्हें बहुत समझाया पोर कहा कि हमारे पास धन-सम्पत्ति है वह किस काम आयेगी ? संयम पालन के लिये तो सभी बहुत समय पड़ा है । परन्तु पूर्णसिंह १२ वर्ष से अधिक घर में नहीं रहे, और २६ वर्ष की अवस्था में वि० सं० २०६६ में देणा ग्राम में आकर भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्टशिष्य भ० पद्मनन्दी के पास दीक्षित हो गए और उनके पास साठ वर्ष तक रह कर जैन सिद्धान्त का अध्ययन किया और काव्य, न्याय, छन्द और अलंकार याद में निपुणता प्राप्त की। 'दीक्षित होने पर गुरु ने इनाम को उसे वे लकीति' नाम से ही लोक में हुए। उस समय उनकी अवस्था ३४ वर्ष की हो गई। तय वे बाचार्य कहलाये। भट्टारक बनने से पहले प्राचार्य या मण्ड लाचार्य पद देने की प्रथा का उल्लेख पाया जाता है।
सकलकीर्ति १५वीं शताब्दी के अच्छे विद्वान और कवि थे। उनके शिष्यों ने उनकी खूब प्रशंसा की है। उनकी कृतियां भी उनके प्रतिभा सम्पन्न विद्वान होने की सूचना देती है ब्रह्म जिनवास ने, जो उनके शिष्य और लघुभ्राता थे । उन्होंने रामचरित्र की प्रशारित में निर्ग्रन्थ, प्रतापी कवि, वादि कला प्रवीण, तपोनिधि और विकास भास्वान्' बतलाया है।
तत्पट्ट पंकेशविकास भास्वान् बभूवनिद्येग्थवरः प्रतापी
महाकवित्वादि कला प्रवीणस्तपोनिधिः श्री सकलातिः ।। १८४ और शुभचन्द्र ने 'पुराण काव्यार्थ विदाम्बर' बतलाया है' ।
ब्रह्म कामराज ने जयपुराण में सकलकीर्ति को योगीश, ज्ञानी भट्टारकेश्वर बतलाया है। इससे वे
अपने समय के प्रसिद्ध ज्ञानी दिगम्बर भट्टारक थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
नैणवां से शिक्षा सम्पन्न होकर थाने के पश्चात् जन साधारण में चेतना जागृत करने के लिये स्थान-स्थान पर विहार करने लगे। एक बार वे खोडण नगर आये, और नगर के बाहर उद्यान में व्यानस्थ मुद्रा में बैठ गए और सम्भवतः तीन दिन तक वे उसी मुद्रा में स्थित रहे, उन पर किसी की दृष्टि न पड़ी। नगर से पानी भरने मामु गे माई हुई एक after ने जब न साधु को ध्यानस्थ बैठे देखा तो उसने शीघ्र जाकर अपनी मा निम्न शब्दों में निवेदन किया— कि इस नगर के बाहर कुएँ के समीप जो पुराना मकान बना हुआ है उम
विरा
१. पुराविद
विभानू बोर: सकलादितिः
२. सकलकतियोगी ज्ञानी भट्टारकेश्वरः ।
श्रेणिक चरित प्र०
"""" जयपुराण प्र०