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१५वीं १६वीं १७वीं और १८वीं शताब्दी के प्राचार्य, महारक और कवि
कमंद्रमोन्मीलन दिक्करीन्द्र सिद्धान्तपायोनिधिवृष्टपारं ।
षट् त्रिशवाचार्य गुणेः प्रयुक्त नमाम्यहं श्री गुणभद्रसूरिम् ॥ श्रतमुनि ने अपना परमागमसार' शक सं० १२६३ (वि० सं० १३६८) में रचा है। अतः टीकाकार सोमदेव उसके बाद के (१५वीं शताब्दी के) विद्वान हैं ।
पद्मनाभ कायस्थ कवि पद्मनाभ का जन्म कायस्थ कुल में हुमा था। वह सस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान थे, और जैनधर्म के प्रेमी थे। इन्होंने भट्टारक गणकीति के उपदेश से पूर्व सूत्रानुसार यशोधर चरित या दयासुन्दविधान नामक काग्य की रचना की थी। सन्तोष नाम के जैसवाल ने उनके इस ग्रन्थ की प्रशंसा को थो, और विजय गिह के पुत्र पृथ्वीराज ने अनुमोदना की थी।
प्रस्तुत यशोधर चरित्र में संघियों है जिनमें राजा यशोधर और चन्द्रमती का जीवन परिचय दिया गया है। यह ग्रन्थ वीरमदेव के राज्य में कुश राज के लिए लिखा गया था । कुवराज ग्वालियर के तोमर वंशी गजा वीरम देव का विश्वास पात्र मन्त्री था । यह राजनीति में चतुर पौर पराक्रमी शासक था। सन् १४०२ (वि० सं० १४. ५६) या उसके कुछ समय बाद राज्य सत्ता उसके हाथ में प्राई थी। इसने अपने राज्य को मदद व्यवस्था की थी। शत्रु भी इसका भय मानते थे। इसके समय हिजरा सर ८०५ सन् १४०१ वि० सं० १४६२) में मल्लू इकबाल खां ने ग्वालियर पर चढ़ाई की। परन्तु उसे निराश होकर लौटना पड़ा। फिर उसने दूसरी बार ग्वालियर पर धंग डाला, किन्तु उसे इस बार भी आस-पास के इलाके लूट-पाट कर दिल्ली का रास्ता लेना पड़ा।
कुशराज वीरमदेव का विश्वासपात्र महामात्य था, जो जैसवाल कुल में उत्पन्न हुना था, यह राजनीति में दक्ष मौर वीर था। पितामह का नाम भुल्लण और पितामही का नाम उदिता देवी था और पिता का नाग जनपाल और माता का नाम लोणादेवी था। कुश राज के ५ भाई पौर भी थे जिनमें चार बड़े और एक छोटा था । हंसराज, सैराज, रैराज, भवराज, ये बड़े भाई थे । पौर क्षेमराज छोटा भाई था। इनमें कुशराज बड़ा धर्मात्मा और राजनीति में कुशल था। इसने ग्वालियर में चन्द्रप्रभ जिनका एक विशाल मन्दिर बनवाया था और उसका प्रतिष्ठादि कार्य बड़े भारी समारोह के साथ सम्पन्न किया पा' । कुशराज की तीन स्त्रियाँ थीं रल्हो, लक्षण थी
१. वोऽभूज्जैसवाले विमलगुणनिष लणः साधु रत्नं, साधु श्री जनपालो भवदितया स्तत्सुतो दानशीलः । जैनेन्द्रागधनेषु प्रमुदित हृदयः सेवकः सद् गुरुणा लोणाच्या सत्यशीला अनि विमलमति नपालम्य भार्या ॥५ जाता पद तनयास्तयोः सुवृतिनोः श्री हंसराजोऽभवत् । तेषामाचतारततरनदनुजः संराज नामा जनि ।
राजो भवराजकः समनि प्रख्यात फीतिमंहा. घाधु श्री कुशराज कस्तदनुच श्रीक्षेमराजो लघुः ॥६ जातः श्रीकुषाराज एच सकलक्ष्मापान मूलामगोः । श्रीमत्तोमर-वीरमस्य विदितो विश्वास पात्र महान । मंत्री मंत्र विचक्षणः क्षणभयः बीरगारिपक्षः अणात् । सोरणीमीक्षण रक्षण क्षममति बनेन्द्र पूजारतः ।७।। स्वर्ग पनि समृद्धि कोति विमनपल्यालयः कारितो, लोकानां हृदयंगमो बहुघनपचन्द्र प्रमस्य प्रभोः । ये नंतत्समकालमेव रुचिरं भव्यंबकाव्यं तपा। साधु श्री कुशराज फेनसुषिया कोविचरस्थापक ॥ -बैन पन्य प्रशस्ति भा० १५.० ५