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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ है । ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती निम्न विद्वानों का स्मरण किया है-गुणभद्र, कवि परमेष्ठी, बाहुबलि अकलंक, जिनसेन पूज्यपाद, प्रभेन्दु और तत्पुत्र श्रुतमुनि का नामोल्लेख किया हैं। प्रभंजन चरित- इसमें शुभदेश के भंभापुर नरेश देवसेन के पुत्र प्रभंजन की जीवन-गाथा अंकित है । अन्य के प्रारम्म में जिन, मध्य में गुरु, पाध्याय, साधु, सरस्वती, यक्ष, नवकोटि मुनि, और अपने गुरु चिक्क प्रभेन्दु का स्मरण किया हैं । इस ग्रन्थ की अपूर्ण प्रति ही उपलब्ध है। ___ सम्यक्त्व कौमीइसमें सम्यक्त्व को प्राप्त करने वालों की कथाएँ दी गई हैं । ग्रन्थ में १२ संघियां और १२ पद्य हैं जिनमें अर्हदास सेठ को स्त्रियों द्वारा कही गई सम्यक्त्वोत्पादक कथाएं हैं। इसमें कवि ने, पंच, रत्न, श्रीविजय, गणवम, जन्न, मधुर, पील, नागचन्द्र, कण्णय, नेमि और बन्धवर्ग का उनकी रचनाओं के नामोल्लेख साथ स्मरण किया हैं। कवि ने इसकी रचना शक सम्वत् १४३१ (सन् १५०६) में की हैं। कवि मंगराज ने शक संवत् १३५५ (१४३३) में श्रुतमुनि को ऐतिहासिक प्रशस्ति लिखी है । जिसकी पद्य संख्या ७८ है। प्रशस्ति सुन्दर और भावपूर्ण है । इसने श्रवण वेल्गोल का १०८ वां संस्कृत का शिलालेख (शक संवत् १४४३ (सन् १५२१ ई०) में लिखा था। प्रबन्ध-ध्वनि सम्बन्धात्सतागोत्पादन-समा । मङ्गराज-कवेर्वाणी वाणी वीणायते तरां ।। ७८ श्रीपाल चरित-इस ग्रन्थ में १४ सन्धियां और १५२७ पद्य है । यह संगात्य छन्द में रचा गया है । इसमें गण्डरीकणी नगरी के राजा गुणपाल के पुत्र धोपाल का चरित वर्णित है। मंगल पद्य के बाद कबि ने भद्रबाहु, पूज्य पाद ग्रादि कवियों की प्रशंसा की है। नेमि जिनेश संगति----इसमें ३५ सन्धियाँ प्रोर १५३८ सोमत्य छन्द हैं। इसमें नेमिनाथ तीर्थकर का चरित वर्णित है । कवि ने इसमें अनेक विद्वान आचार्यों का उल्लेख किया है। पाकशास्त्र (सूप शास्त्र)-यह ग्रन्थ वाधिक षट् पदी के ३५६ पद्यों में समाप्त हया है। इसमें पाक और शास्त्र का अच्छा वर्णन किया है। कवि का समय ईसा को १५वीं शताब्दी का उत्तरार्ध १६वीं शताब्दी का पूर्वार्ध है । सोमदेव इनका वंश बघेरवाल था। इनके पिता का नाम माभदेव और माता का विजेणी (विजयिनी) था, जो म सराणा और सुशीला थी। यह गृहस्थ विद्वान ! नेमिचन्द्राचार्य रचित 'त्रिभंगी सार' की, धनमुनि द्वारा किसाषा में रची गई टीका को लाटीय भाषा में रचा है । सोमदेव ने गुणभद्राचार्य की स्तुति की है, संभवतः सकेगाहोंगे । या अन्य कोई प्राचीन भाचार्य, क्योंकि गुणभद्र को टीका कर्ता ने कर्मद्रमोन्मीलन दिक्करीन्द्र, सिद्धान्त थे निषिदष्टपार, मौर षट् प्रिंशदाचार्य गुण युक्त तीन विशेषणों से विशिष्ट बतलाते हए नमस्कार किया है। --- - - १. इश-शर-शिखि-विषुमित-शकर रिघावि शरद द्वितीयगाषाढ़े। सित नमि-विधु-दिनोदय जुषि सविशाक्षे प्रतिष्ठितेय मिह ।। ६ २. यथा नरेन्द्रस्य पुलोनजारिया नारायणस्यापि सुता बभूव । तथाभदेवस्य विर्जणि नाम्नी प्रिया सुधर्मा सगुणा मुशीला ॥३ सयो सुतः सद्गुण वान सुवृतः सोमोऽविधः कौमुपवृद्धि कारी। व्याघ्रर पा लाम्बु निधेः सुरलं जीयाचिर सर्व जनीन वृत्तः 11४ -जन अन्य प्रशस्ति सं० मा० ११०२८ ३. या पूर्व श्रुत मुनिना टीका कर्णाटभाषया विहिता। लाटीयभाषया मा विरभ्यते सोमदेवेन ।। वही जैन ग्रन्थ प्र. भा०प० २५
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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