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________________ है और गैर मान और इवि कवि वाग्भट व्याकरण, छन्द, अलंकार, काव्य, नाटक चम्पू और साहित्य के मर्मज्ञ थे। कालिदास, दण्डी और वामन आदि विद्वानों के काव्य-ग्रन्थों से खूब परिचित थे और अपने समय के अखिल प्रज्ञालुमों में चूडामणि थे तथा नुतन काव्यरचना करने में दक्ष थे। कवि ने अपने पिता नेमिकुमार की खूब प्रशंसा की है, और लिखा है वे कोन्तेय कुल रूपी कमलों को विकसित करने वाले अद्वितीय भास्कर थे, सकल शास्त्रों में पारंगत तथा सम्पूर्ण लिपि भाषामों से परिचित थे, और उनकी कोति समस्त कविकूलों के मान सन्मान और दान से लोक में व्याप्त हो रही थी। कवि वाग्भट भक्ति के अद्वितीय प्रेमी थे। स्वोपज्ञ काव्यानुशासन वत्ति में प्रादिनाथ, नेमिनाथ और भगवान पार्श्वनाथ का स्तवन किया गया है। जिससे यह सम्भव है कि उन्होंने किसी स्तुति ग्रन्थ की रचना की हो; क्योंकि रसों में रति (शृंगार) का वर्णन करते हुए देव विषयक रति के उदाहरण में निम्न पद्य दिया है "नो मक्त्य स्पयामि विभः कार्य न सांसारिक:, कित्वा योज्य करी पनरिदं स्वामी शमभ्यचंये। स्वप्ने जागरणे स्थिती विचलने दुःखे सुखे मन्दिरे, कान्तारे निशिवासरे च सततं भक्तिर्ममास्तु त्वयि।" इस पद्य में बतलाया है-.-"कि हे नाथ ! मैं मुक्तिपुरी की कामना नहीं करता और न सांसारिक कार्यों के लिये विभव (धनादि सम्पत्ति) की ही प्राकांक्षा करता हूं; किन्तु हे स्वामिन् हाथ जोड़कर मेरी यह प्रार्थना है कि स्वप्न में, जागरण में, स्थिति में, चलने में, दुःख सुख में, मन्दिर में, वन में, रात्रि और दिन में निरन्तर प्रापकी ही भक्ति हो।' इसी तरह कृष्ण नील वर्णों का वर्णन करते हुए राहड के नगर और वहां के प्रतिष्ठित नेमि जिनका स्तवनसूचक निम्न पद्य दिया है :-- सजलजलधनीलाभासियस्मिन्वनाली मरकत मणिकृष्णो यत्रने मिजिनेन्द्रः। विकचकुवलयालि श्यामलं यत्सरोम्भः प्रमत्यति न कांस्कांस्तत्परं राहडस्य। इस पद्य में बतलाया है कि जिसमें वन पंक्तियां सजल मेघ के समान नीलवर्ण मालूम होती हैं और जिस नगर में नीलमणि सदृश कृष्णवर्ण श्री नेमि जिनेन्द्र प्रतिष्ठित हैं तथा जिनमें तालाब विकसित कमल समूह से पूरित है वह राहड का नगर किन-किन को प्रमुदित नहीं करता।' नेमिकुमार और राहड में राम लक्ष्मण के समान भारी प्रेम था। यद्यपि राहह ने विशेष अध्ययन नहीं कि था, क्योंकि उसका उपयोग व्यापार की ओर विशेष था। उसने व्यापार में विपुल द्रव्य और प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। इस कारण नेमिकुमार को प्रध्ययन करने का विशेष अवसर मिल गया, और सिद्धान्त, छन्द, अलकार, काश्य पौर व्याकरणादि तथा भाषा और लिपि का परिज्ञान किया। अध्ययन के उपरान्त नेमिकूमार भी अपने भाई के साथ व्यापार में लग गये, और दोनों से न्याय में विपुल धन अजित किया। राहड प्रसिद्ध व्यापारी था उसका व्यापार द्वीपान्तरों में भी होता था। व्यापार में जो धन कमाया उसले उन्होंने दो नगर बसाये, राहड़पुर और नलोटकपुर राहड़पुर राइड के नाम से बसाया गया था, उसमें नेमि जिनका विशाल मन्दिर था जिसमें भगवान नेमिनाथ की मरकत मणि के समान कृष्ण वर्ण की सुन्दर मूर्ति विराजमान थी । १. नव्यानेक महाप्रबन्धाचा चातुर्यविस्फजित-स्फारोदारमशः प्रचारसततच्याकीर्ण विश्वत्रयः । थी मन्नेमिकुमार-सूरिरखि प्रज्ञासु चूडामणिः काव्यानामनुशासनं वमिदं चने कविग्भिटः ।। २. 'दुस्तरसमस्तशास्त्रारावारगहनमध्यावगाहनमधमन्दरस्य ।' काव्यानुशासन पृ०१ ३. 'अमन्दमन्दराय नाण्यानमात्रतहत मध्यमानमहाब्धिमध्य समुल्लासत्यक्ष्मी लक्षितवक्षःस्थलस्य । वही पृष्ठ १ ४. कारितामरपुर। रिम्पति धीराहडपुर प्रतिष्ठापित सुप्रसिद्धहिमिगिरिशिखरानुकारि रमणीय शुभ्राधांलिह शिनवरा गारोत्त न शृङ्गोत्सङ्गसङ्गतसौवर्णवनाय सम्पायमानगोकिङ्किणः भागाकारविवासितरविरष तुरङ्गमस्य । वही पृ. १
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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