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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग ३ शासन किया। प्रस्तुत कामिराय पाण्ड्यबंग का भागिनेय (भानजा) था । और उसे राजेन्द्र पूजित बतलाया है। कवि ने कामिराय के वंश का विस्तृत परिचय दिया है। ये सभी राजा जैनधर्म के पालक थे। इस ग्रंथ का नाम शुगारार्णव चन्द्रिका और अलंकार संग्रह है । ग्रन्थ में दश परिच्छेद हैं। १ वर्गगणफल निर्णय २ काव्यगत शब्दार्थ निश्चय ३ रस भाव निश्चय ४ नायक भेद निश्चय ५ दश गुणनिश्चय रीति निश्चय ७वृत्ति निश्चय ८ शय्या पाक निश्चय अलकार निर्णय १० दोष गुण निर्णय । इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि अलंकारों के सभी उदाहरण स्वयं कवि द्वारा निर्मित हैं। इस ग्रन्थ का निर्माण कवि ने सन् १२५० के लगभग किया है । अतः कवि का समय तेरहवीं शताब्दी है । ग्रन्थ डा. कुलकर्णी द्वारा सम्पादित होकर भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो हो चुका है। कवि बारभट वाग्भट नाम के अनेक विद्वान हुए हैं। उनमें अष्टाङ्ग हृदय नामक वंद्यक ग्रन्थ के कर्ता वाग्भट सिंहगुप्त के पुत्र और सिन्धु देश के निवासी थे । दूसरे वाग्भट नेमि निर्माणकाव्य के कर्ता हैं, जो प्राग्वाट या पोरवाड़ वंश के भूषण तथा छाड के पुत्र थे । तोसरे वाग्भट सोमश्रेष्ठी के पुत्र थे, वाग्भट्टालंकार के कर्ता और गुजरात के सोलकी राजा सिद्धराज जयसिंह के महामात्य थे। और यह वि० सं० ११७६ मे मौजूद थे । वि० सं० ११७८ में मनिचन्द्र सूरि का समाधिमरण हा । वाग्भट ने धवल और ऊचा जैनमन्दिर बनवाया था उसके एक वर्ष बाद देवसुरि द्वारा वर्धमान की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। यह श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विद्वान थे। चौथे वाग्भट इन सबसे भिन्न थे, पोर महाकवि बाग्भट नाम से प्रसिद्ध थे। इनके पितामह का नाम मक्कलप' पितामही का नाम महादेवी था और पिता का नाम नेमिकुमार था। मक्कलप के दो पुत्र थे राहड और नेमिकुमार | उनमें राह्ड ज्येष्ठ और नेमिकुमार लघुपुत्र थे जो बड़े विद्वान धर्मात्मा और यशस्वी थे। और अपने ज्येष्ठ भ्राता राहड के परम भक्त थे। मेवाड़ देश में प्रतिष्ठित भगवान पाश्वनाथ जिनके यात्रा महोत्सव से उनका अद्भुत यश अखिल विश्व में विस्तृत हो गया था। नेमिकुमार ने राहत पुर में भगवान नेमिनाथ का और नलोटक पुर में वाईस देवकुलकाओं सहित भगवान आदिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया था। राहड ने उसी नगर में प्रादि नाथ मन्दिर की दक्षिण दिशा में २२ जिनमंदिर बनवाए थे। जिससे उसका यशरूपी चन्द्रमा जगत में पूर्ण हो गया था-व्याप्त हो गया था। १. तस्य श्रीपाण्ड यङ्गस्य भागिनेमो गुणरिणवः । विट्टलाम्बा महादेवी पुत्री राजेन्द्रपूजितः ॥१-१६ २. देखो, शृंगाराव चन्द्रिका के ११ से १८ तक के पद्य । ३. यज्जन्मनः सुकृतिनः खलु सिन्धु देशे यः पुत्रवन्समकरोद् भुवि सिंह गुप्तम् । ते मोक्तमेतद्भयज्ञ भिषग्वरेण स्थानं समाप्तमिति--------- -पराज पुस्तकालय की अष्टांग हृदय की कन्नड़ी प्रति ४. अहिच्छत्र पुरोत्पन्न-प्रारबाट कुलशालिनः । __ छाइस्य सुतश्यके प्रबन्ध वाग्भटः कविः ॥८७ -नेमिनिर्वाण काव्य ५. 'सिरि थाहत्ति तनओ आसि वुहो तस्स सोमस्स' ! वाग्भटालंकार शतकादशके साष्ट सप्तती विकमार्कतः । यत्सराणा ब्यतिकाते थी मुनिचन्द्र सूरयः । आराधनाविधि श्रेष्ठं कृत्वा प्रायोपवेशनं । सामरीयूष कल्लोलप्लुतास्ते विदिवं ययुः ।। नत्सरे तत्र केन पूर्ण श्री देवसूरिभिः । श्री वीरस्य प्रतिष्ठा सबाहटकारयन्मुदा युग्मम् ॥ -प्रभावकचरित ६. राहपुर मेवाड़ देश में कहीं था जो नेमिकुमार के ज्येष्ठ भ्राता राहड द्वारा बसाया गया था -काश्यानुशासन की उत्थानिका ७. नाभेय पत्य सदने दिणि दक्षिणयां, द्वाविंशति विवधता जिनमन्दिराणि । मन्ये निजाग्रजवरप्रभुराहस्य, पूर्ण कृ. जगति मेन यश: शशाङ्कः ।। -काव्यानुशासन पृ० ३४
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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