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________________ १६ तेरहवीं और चौदहवीं सताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि स्पष्ट है कि मुनिसेन ने कोई ग्रन्थ बनाया था, जो अब उपलब्ध नहीं है। कवि श्रीधरसेन नानाशास्त्रों के पारगामी विद्वान थे, और बड़े-बड़े राजा लोग उन पर श्रद्धा रखते थे। वे काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान और कयि ये 1 इनकी एकमात्र कृति 'विश्वलोचन कोश' है, इसका दूसरा नाम मुक्तावलि कोश है जैसा कि 'मुक्तावली विरचिता' ग्रन्थ के वाक्य से स्पष्ट है । इस कोश में २४५३ श्लोक है । स्वर वर्ण और ककारादि के वर्णक्रम से शब्दों का संकलन किया गया है। नामार्थ कोशों में यह सबसे बड़ा कोश है। इस कोश की यह विशेषता है कि श्रीधरसेन ने एक शब्द के अधिक से अधिक अर्थ बतलाये हैं। उदाहरण के लिए 'रुचक' शब्द को लीजिये। विश्वलोचन में इसके १२ अर्थ बतलाये हैं, अमरकोश के चार और मेदनी में दश पथं बतलाये हैं। प्रशस्ति के चौथे पद्य में 'पदविदां च पुरे निवासी' वाक्य से श्रीधर सेन का निवासस्थान ज्ञात होता है, पर उसके सम्बन्ध में इस समय कुछ कहना शक्य नहीं है। कवि ने स्वयं लिखा है कि मैंने इस कोश की रचना कवि नागेन्द्र और अमरसिंह आदि कोशों सासर बार की है। कोटा महत्व पूर्ण है। कोश में रचनाकाल नहीं दिया। किन्तु इसकी रचना मेदनी और हेमचन्द्र के बाद हुई है प्रतः श्रीघरसेन का समय विक्रम की १३वीं शताब्दी का उपान्त्य जान पड़ता है। विजयवर्गी विजयवर्णी ने अपना कोई परिचय नहीं दिया । केवल गुरु का और जिसकी प्रेरणा से ग्रन्थ बनाया उसका उल्लेख तो किया है किन्तु अपने संघगण-गच्छादि और समय का कोई उल्लेख नहीं किया । यह काव्यशास्त्र के प्रच्छे विद्वान थे। इन्होंने बंग नरेन्द्र कामिराय की प्रेरणा से शृंगारार्णवचन्द्रिका' नाम का ग्रन्थ बनाया था जैसा कि निम्न पुष्पिका वाक्य से प्रकट है: इतिपरम जिनेन्द्रविनचन्दिरविनिर्गतस्याहावचन्द्रिकाचकोरविजयकीतिमुनीन्द्र धरणाब्जचञ्चरीकविजयनिविरचिते श्रीवीरनरसिंह कामिराज बजनरेन्द्रकीशरविन्दसं निभकोतिप्रकाशके भृगारार्णव चन्द्रिका नामिन अलङ्कारसंग्रहे वर्णगणफलनिर्णय नाम प्रथमः परिच्छेदः।" सोमवंशी कदम्ब राजाओं के द्वारा संरक्षित भूमिका शासन करने वाला नरेश वीर नरसिंह हुमा । इसने सन् ११५७ ई० में बंगवाडि में अपनी राजधानी स्थापित की थी। इसने प्रजा पर धर्म और न्यायनीति से शासन किया था। इनका पुत्र चन्द्रशेखर राजा हया इसने सन् १२०० से १२२४ ई. तक, और इनके छोटे भाई पाण्डय वंग शासक हुए उन्होंने सन् १२२५ से १२३६ तक राज्य किया। सन् १२३६ से १२४४ तक पाण्डपबंग की वहिन विठ्ठल महादेवी ने राज्य का संचालन किया। और सन १२४५ से १२६४ तक महारानी विट्ठल देवो के पुत्र कामिराय ने - . .१. सेनान्वये सकलसस्वसपितश्रीः श्रीमानजायत कविमुनिसेन नामा । आन्वीक्षकी सकलशास्त्रपयी च विद्या यस्या स वाद पदवी न दवीयसी स्यात् ॥१ तस्मादभूतखिलवाङ्मयपारहश्वा विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् । श्री श्रीधरः सकलसस्कविगुम्फितत्त्व पीयूपपानकृतनिर्जर भारनीकः ॥२ तस्यातिशायिनि कवेः पथि जागरूक धोलोचनप्त्य गुरुशासनलोचनस्य । नाना कवीन्द्ररचितानभिधान कोशानाकृष्यसोचनमिवाय मदीयि कोषः ।।३ -विश्वलोचन कोश प्र. २. नागेन्द्र संग्रथित कोशसमुद्रमध्ये नानाकवीन्दमुखशुक्ति समुद्भवेयम् । विवदगृहादमरनिर्मित पट्टसूत्रे मुक्तावली विरचिता हृदि संनिधातुम् ॥६ -विश्वलोचन कोश प्र. ३. श्रीमद्विजयकोयाख्य गुरुराजपदाम्बुजम् । मदीयचित्रकासारे स्थेयात् संधीजने । ४. इत्य नपप्राथितेन मयाऽलंकारसंग्रहः । क्रियते सूरिया नाम्ना श्रृंगाराणवचन्द्रिका १-२२
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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