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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग ३ तीसरे रामकोति भट्टारक वादिभूषण के पट्टधर थे, जिनका बिम्ब प्रतिष्ठित करने का समय संवत् १६७० है। यह रामकीर्ति १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के विद्वान हैं। चौथे राम कीति का नाम भट्टारक सुरेन्द्रकीति के पटधर के रूप में मिलता है। इनमें से प्रथम रामकीर्ति का सम्बन्ध हो बिमलकोति के साथ ठीक बैठता है। यह राम कीर्ति के शिष्य थे, जिनकी लिखी हुई प्रशस्ति चित्तौड़ में संवत् १२०७ की उत्कीर्ण की हुई उपलब्ध है । रामकीति के शिष्य पश कीर्ति ने 'जगत सुन्दरी प्रयोगमाला' नामके वैद्यक ग्रन्थ की रचना की है। जिनका समय विक्रम को तेरहवीं शताब्दी है । क्योंकि यश कीति ने जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला में अभयदेव सूरि का शिष्य धनेश्वर सूरि का (सं० ११७१) का उलनेख किया है। विमलकीर्ति की एक मात्रकृति सुगन्धदशमी कथा है । जिसमें अपभ्रशभाषाके कड़वकों में भाद्रपद शुक्ला दशमी के प्रत की कथा का वर्णन करते हुए उसके फल का विधान किया गया है। कबिने दशवींवत के अनुष्ठान करने की प्रेरणा की है। ग्रंथ में रचना काल नहीं दिया। इन के गुरु रामकीति का समय विक्रम को १३वीं शताब्दी का पूर्वार्ध-(सं० १२०७) है । प्रत: विमलकीति का समय भी विक्रमकी १३वीं शताब्दी का पूर्वधि सुनिश्चित है। मुनि सोमदेव मुनि सोमदेव व्याकरण शास्त्र के अच्छे विद्वान थे । इन्हों ने अपनी शब्दचन्द्रिका वृत्ति में अपनी गुरुपरम्परा और संघ-गण गच्छादिक का कोई उल्लेख नहीं किया। यह शिलाहारवंश के राजा भोज देव (द्वितीय) के समय हुए हैं । कोल्हापुर प्रान्त के अर्जुरिका नामक ग्राम के त्रिभुवन तिलक' नामक जंन मन्दिर में, जो महामण्डलेश्वर गण्डरादित्य देव द्वारा निर्मापित किया गया था। उसमें भगवान नेमिनाथ जिनके चरण कमलों को माराधना के बल से और वादीभ बञांकुश विशालकीति पण्डितदेव के वैयावृत्य से मुनि सोमदेव ने शक सं० ११२७ (वि० सं० १२६२) में बोर गोजदेव के विजयराज्य में 'शब्द चन्द्रिका' नाम की वृत्ति बनाई । इस वृत्ति को मूलसंघीय मेधचन्द्र के दीक्षित शिष्य 'भुजंग सुधाकर' (नागचन्द्र) और उनके शिष्य हरिचन्द्र यति के लिये उक्त संवत में बनाकर समाप्त की थी। जैसा कि उसकी प्रशस्ति के निम्न पद्य से प्रकट है : 'श्री मुलसंघ जलजप्रतिबोधमानोमधेन्द दीक्षितभुजंगसुधाकरस्य । राद्धान्त तोयनिधिवृद्धि करस्यत्ति रेभे हरीन्यू यतये वर दीक्षिताय ॥२॥ शब्दार्णव की रचना गुण नन्दी ने की थी, क्यों कि मुनि सोमदेव ने शब्दचन्द्रिका वृत्ति को गुणनन्दी के शब्दार्णव में प्रवेश करने के लिये नौका के समान बतलाया है । तथा-- 'श्री सोमदेव यति-निर्मित मादधाति, यानौः प्रतीत-गुणनन्दित-शन्दवाओं। सेयं सताममलचेतसि विस्फुरन्सी, वृत्तिः सदानुतपद परिवतिषीष्ट ।। प्रेमी जी ने दो नागचन्द्र नाम के विद्वानों का उल्लेख किया है। एक नागचन्द्र पम्परामायण के कर्ता है, जिन्हें अभिनव पम्प कहा जाता है यह गहस्थ विद्वान् थे । दुसरे नागचन्द्र लब्धिसार के टीका कर्ता हैं यह मुनि थे। इन द्वितीय नागचन्द्र के शिष्य हरिचन्द्र के लिये मुनि सोमदेव ने वृत्ति बनाई है। इन हरिचन्द्रयती को 'राधान्त तोय १. सरपि प्राफिका इडिया जि० २ पृष्ठ ४२१॥ २. देखो, जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला प्रशस्ति । ३. स्वस्ति श्री कोल्लापुरदेशान्तर्वार्जुरिका महास्थान युधिष्ठरावतार महामण्डलेश्वर मंडरादित्य देव निर्मापित त्रिभुवन तिलक दिनालये श्रीमत्परमपरमेष्ठि श्रीनेमिनाथ श्रीपादप माराधनबलेन बादीभवजांकुश श्रीविशालकीति पंक्तिदेव यावृत्यत: श्रीमच्छिलाहार कुल कमल मार्तण्डते गः पुनराजाधिराज परमेश्वरपरमभट्टारकपश्चिम चावति श्रीवीर भोजदेव विजय राज्ये शकवर्षक ससक शतसप्तविंशति ११२७ तम क्रोधन सम्वत्सरे स्वस्ति समस्तानविद्या चक्रवति श्री पूज्यपादानुरक्त चेतसा श्रीमत्सोमदेव मुनीश्वरेण विरचितम शब्दार्णव चन्द्रिका नाम वृत्तिरिति । -जन ग्रन्य प्रशस्ति सं०भा०१पृ० १६९
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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