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________________ 2 ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य ३७३ और विक्रम की १३वीं शताब्दी के विद्वान हैं । कन्नड़ भाषा के जन्न, पार्थ, कमलभव, आदि कत्रियों ने कवि नेमिचन्द्र की प्रशंसा की है। श्रीधर यह ज्योतिष शास्त्र के विशिष्ट विद्वान थे । यह कर्नाटक प्रान्त के जैन ब्राह्मण थे, और बेलबुल नाडांतर्गत नरिगुंद के निवासी थे। इनकी माता का नाम अवोका और पिता का नाम बलदेव शर्मा था । इन्होंने अपने पिता से ही संस्कृत और कन्नड ग्रन्थों का ग्रध्ययन किया था। प्रारम्भ में यह शैव धर्मानुयायी थे, किन्तु बाद में जैन धर्मानुयायी हो गए थे । यह गणितशास्त्र के अच्छे विद्वान थे। इनका समय ईसा की दशवीं शताब्दी का अन्तिम भाग और संभवतः ११वीं का प्रारंभ रहा है। इनकी गणितसार और ज्योतिर्ज्ञान निधि दो रचनाएं संस्कृत भाषा में है और जातक तिलक कन्नड भाषा की रचना है । गणितसार में अभिन्न गुणक, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल भिन्न समच्छेद, भागजा प्रभागजाति, भागानुबन्ध भागमात्र जाति, वैराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड, मिश्र व्यवहार एक पत्रीकरण, सुवर्ण गणित, प्रक्षेपक गणित, क्रय-विक्रय, श्रेणी व्यवहार और काष्टक व्यवहार आदि गणितों का कथन किया है। ज्योतिज्ञाननिधि - यह ज्योतिष का प्रारम्भिक ग्रन्थ है। इसके प्रारम्भ में संवत्सरों के नाम, नक्षत्रों के नाम, योग करण और उनके शुभा शुभ फल दिये हैं। इसमें व्यवहारोपयोगी ज्योतिष का वर्णन है । 1 तक तिलक - कन्नड भाषा का ग्रन्थ है | यह जातक सम्बन्धी रचना है । यह कन्द वृत्तों में रचा गया है इसमें २४ अधिकार हैं। इसमें लग्न, ग्रह, ग्रहयोग और जन्मकुण्डली सम्बन्धी फलादेश का कथन किया गया है। इस ग्रन्थ को श्रीधराचार्य ने पश्चिमी चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम के राज्यकाल में बनाया या । कवि ने लिखा है कि मैंने विद्वानों की प्रेरणा से जातक तिलक की रचना को यह ग्रन्थ मैसूर विश्वविद्यालय की ओर से प्रकाशित हो चुका है । वासवचन्द्र मुनीन्द्र इन्हें मूलसंघ देशीयगण के विद्वान आचार्य गोपनन्दी के सघर्मा बतलाया है । यह कर्कश तर्कशास्त्र में निपुण थे । इन्होंने चालुक्य राजधानी में अपने वाद पराक्रम से 'बाल सरस्वति' की उपाधि प्राप्त की थी। जैसा कि शिलालेख के निम्न पद्य से प्रकट है वासचन्द्र मुनीन्द्रन्द्रस्याद्वाद तर्कश कक्कंश- धिषणः । चालुक्य कटकमध्ये बाल- सरस्वतिरिति प्रसिद्धिप्राप्तः ॥ - जैन लेख सं० भा० १ पृ० ११६ यह लेख शक सं० १०२२ (सन् ११०० ई०) में उत्कीर्ण किया गया है। प्रतः वासवचन्द्र का समय ईसा की ११वीं शताब्दी जान पड़ता है। देवेन्द्रमुनि इनकी गुरु-शिष्य परम्परा ज्ञात नहीं है । इनकी एक रचना बालग्रह चिकित्सा है। इसमें बालकों की ग्रहपीड़ा की चिकित्सा का वर्णन है । ग्रन्थ प्रायः वाक्य रूप में है । कवि का समय लगभग १२०० ईसवी है। नयकीर्तिमुनि मुनि नयकीर्ति मूलसंघ देशीयगण के प्राचार्य गुणचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के शिष्य थे । जो जैनागम के 1
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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