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________________ पणाणण पमाददोषगरिमा गयी जहा सध्वपरोवयारकरणमा इमेसि इमे ! . जैन धर्म का प्राचीन इतिहास--भाग २ जाए जीव मेयो चेयण सम्ममवगम्मरिश पर समुश्किशणमारंभदे । किं तदित्याह-वाक्य के साथ उसकी पहलो गाथा की पंजिका दी गई है। मन्तिम भाग सो जयउ वासुपुज्जो सिवासु पुज्जास पुज्ज-पय-पउमो । पविमल बसुपज्ज वो सवकिति पिये पियंवादिक्षा समुधिय वि मेघचंदप्पसाव सुदकित्तियरो। जोप्तो किशि भणिज्जा परिपब्जिय चंदकिसि सि ॥२॥ जेणासेसवसं प्तिया सरसई ठारवंत रामोहणी, अंगाढं परि भिऊण मुहया सोजत मुद्दासई। जस्सापुष्वगुणप्पभूवरयणालंकार सोहग्गिरि ........ किशिदेवजदिणाणासि गंयो कमो ॥३॥ उपण पण्णाण मिसीणमंति, पयोजणं णरिथ तहा विहं वे कज भवेचे विमिरा बहरणं वालाणमिच्चस्थ कयं ममेयं ॥४॥ अण्णाणेग पमावदोषगरिमा गंथस्स होविशिवा, पालस्सेण व एत्य जंण संबन्धणिज्जं पि में। तं पुख्वावर साहसोहण सुही सोहंतु सम्म सुही, जंहा सवपरोवयारकरणे संतोगिही दबवा ॥५॥ एसो बंबवि बंधणिज्जमितिमे वेवस्स बंधो इमो, एवं बंध णिमित्त मस्स समये भेदा इमेसि इमे। इच्चे कहिवक्कमेण इमिणा णच्या जवी संगह, पंचण्हं परिभावो भवभयं णिच्चासिम बच्चये।६। पा विमला गुरण गुराई पहुप्पिया अंति किय चर्मकारा, पंजीरंजिय भवणा चिटठउ सकिति कित्तिव्य ।। जादं जत्य स लड मूलमहिमे साहाहि सस्सोहियं । सच्छायं सगुणति बुदित विसयं भूदेवयाणं सया। धम्मारामुव राहवस्स कविणो तत्थेसगंयो करो। गामे पुस्खलि "----णामसहिये कालामए ॥॥ सोलह सहिय सहस्से गय सगकाले पवढ्डमाणस्स । भाव समस्तसमता कत्तिय वीसरे एसा ॥६॥ इमिस्से गंथ संखाण सिलोएहि फडीकर्य । पण्णासेहि समं बुच्छं दसयं वसहिगुणं ॥१०॥ ग्रंथ संख्या ५००० । श्रीपंचगुरुभ्यो नमः शुभमस्तु भव्यलोकाय । गोम्मद पंजिका नाम गोम्मटसार टिप्पणं समाप्तं । मेघचन्द्र विद्यदेव मेषचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गये हैं। उनमें सकलचन्द्र के शिष्य मेघ चन्द्र का यहां परिचय दिया जा रहा है । यह मेधचन्द्र मूलसंघ देशीयगण और पुस्तक गच्छ के थे। न्याय, व्याकरण सिद्धान्त प्रादि सभी विषयों के अधिकारी विद्वान थे। इसी कारण श्रवणबेलगोल के ४७वें शिलालेख में प्रापको बड़ी प्रशंसा की गई है और बतलाया है कि प्राचार्य मेषचन्द्र सिद्धान्त में वीरसेन, तर्क में प्रकलंकदेव और व्याकरण में पूज्यपाद के समान विद्वान थे। विद्य इनकी उपाधि थी पौर यह विद्यचक्रेश्वर कहलाते थे। श्री मूलसंघकृत पुस्तक गच्छ वेशीयोचदगणाधिप सुताकिक चक्रवर्ती। सैद्धान्तिकेश्वर शिसामणि मेघचन्द्रस्त्रं विचदेव इति सद्विखुषाः स्तुवन्ति ।। १. गुरपश्चन्द्र के सघर्मा मेषचन्द्र । नयकीति के शिष्य मेषचन्द्र, नमकीति का स्वर्गवास पाक सं० १.६९ (सन् १९७७) में हना था। बालचन्द्र के शिष्य मेषचन्द्र, माषनन्दी व्रती के शिष्य मेषचन्द्र । और सकलचन्द्र के शिष्य मेषचन्द्र, जो विद्यमश्वर नाम से प्रसिद्ध थे।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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