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________________ यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आजार्य समय ३४१ ग्रन्थ में रचनाकाल दिया हुआ नहीं है । यतः यह निश्चय करने में कठिनाई होती है कि यह ग्रन्थ कब और कहाँ रचा गया । पुरातात्विक, व लेखादि सामग्री भी उपलब्ध नहीं है । अतः ग्रन्थ के अन्तः परीक्षण द्वारा इस समस्या को सुलझाने का यत्न किया जाता है। द्रव्य स्वभाव प्रकाशक नयचक्र में अनेक ग्रन्थकारों के पद्यों को उक्तं च वाक्य के साथ उद्धत किया गया है। और विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के विद्वान पं० आशाधर जी द्वारा इष्टोपदेश टीका का निर्माण सं० १२८५ से पूर्व हो गया था, क्योंकि सं० १२८५ में रने जाने वाले जिन यज्ञकल्प को प्रशस्ति में इष्टोपदेश टीका का उल्लेख है । इष्टोपदेश के २२ पद्य की टीका के अन्तर्गत द्रव्य स्वभाव प्रकाश नयचक्र की ३४६ वीं गाथा उद्धत है। गहियं तं सुप्रणाणा पच्छा संवेयणेण भाविज्जा | जो हु सुय मवलंब सो मुज्झइ अप्पसम्भावे ॥१४६॥ चूंकि श्राशावर १३वीं शताब्दी के विद्वान हैं । अतः द्रव्य स्वभावप्रकाश की रचना सं० १२८५ से पूर्व हुई है। वह उसके बाद की रचना नहीं है । एकत्व सप्तति के आदि प्रकरणों के कर्ता मुनि पद्मनन्दि है। उनकी एकत्व सप्तति के पद्म अनेक विद्वानों ने उद्धृत किये हैं। एक सप्तति के दो पचों को मलवारी देव ने नियमसार की टीका में (गाथा ५१ - ५५ में) तथा चोक्तमेकत्वसप्तती नामोल्लेख के साथ एकत्व सुप्तति का ७६ वां पद्म, और १००व गाथा की टीका में ( ३६-४१) पद्यों को उद्धृत किया है। पद्मप्रभ मलधारी देव का स्वर्गवास वि सं० १२४२ में हुआ था । अतः पद्मनन्दि की एकत्व सप्तति सं० १२४२ से पूर्व बनकर प्रचार में आ चुकी थी । इस एकत्व सप्तति की एक कनड़ी टीका है जिसके कर्ता प्रधनन्दिवती है जिनकी ३ उपाधियाँ पाई जातो हैं। पंडित देव, व्रती और मुनि | यह शुभचन्द्र राद्धान्त देव के प्रय शिष्य थे और उनके विद्या गुरु थे कनकनन्दि पण्डित | पद्मनन्दि मुनि ने अमृतचन्द्र की बचन चन्द्रिका से प्राध्यात्मिक विकास प्राप्त किया था और निम्बराज नृपति के सम्बोधनार्थं एकत्व सप्तति की कनड़ी वृत्ति रची थी।" प्रस्तुत निम्बराज शिलाहार वंशीय गण्डरादित्य नरेश के सामन्त थे । उन्होंने कोल्हापुर में अपने अधिपति के नाम से 'रूपनारायण वसदि, नामक जैन मन्दिर का निर्माण कराया था । तथा कार्तिक वदि ५ शक सं० १०५८ ( वि० सं० ११६३ ) में कोल्हापुर में मिरज के आस-पास के ग्रामों का आपने दान दिया था। एकत्वसप्तति के कर्त्ता पद्यनन्दि और कनड़ी वृत्ति के कर्त्ता पद्मनन्दि व्रती दोनों भिन्न भिन्न विद्वान हैं । पद्मनन्दि पंचविशतिका के कर्ता पद्मनन्दि विक्रम की १२वीं के पूर्वार्ध के विद्वान जान पड़ते हैं। अतः द्रव्यस्वभाव प्रकाश नयचक्र के कर्ता माइल्ल धवल १२वीं शताब्दी के मध्यकाल के विद्वान होना चाहिये । कुमुदचन्द्र कुमुदचन्द्र नाम के अनेक विद्वान प्राचार्य हो गए हैं। उनमें कल्याण मन्दिर स्तोत्र के रचयिता भिन्न कवि हैं । १. श्री धनन्दिवृति निर्मिते यम् एकरवसप्तत्यखिलार्थ पूर्तिः ॥ वृत्तिश्विरं निम्यनृप प्रबोधलब्धात्मवृत्ति जंयतां जगत्याम् । स्वस्ति श्री चन्द्रराद्धान्तदेवाप्रशिष्ये कनकनन्दिपण्डितवास्मि विकसितकुमुदानन्द श्रीमद अमृतचन्द्र चन्द्रिकोन्मीलितने त्रोत्पलावलोकिताशेषाध्यात्मतत्ववेदिना पद्मनन्दिमुनिना श्रीमज्जैनसुधाव्धिवर्धनकरा पूर्णेन्दुराराति वीर श्रीपतिनिम्बराजावबोधनाय कृतकत्वसप्ततेव' सिरियम् - तज्ज्ञाः संप्रवदन्ति संततमिह श्रीपद्मनन्दि व्रती, कामध्वंसक इत्यलं तदमृत तेषां वचरसर्वथा अंग्रेजी प्रस्तावना पद्मनन्दि पंचविशति पु० १७
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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