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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-माग २ किया गया, उससे मन्दिर तथा उसको चहार दीवार बनवाई गई। इस जिनालय के निर्माण में ७ करोड़ लोगों की सहायता होने से इसका नाम 'एल्कोटि जिनालय' रखा गया । पारसिय केरे के लोगों ने शान्तिनाथ का एक मन्दिर और बनवाया था। उसके प्रबन्ध के लिये दान दिया था। जैन लेख सं०भा० ३ पृ० ३११ महनन्दि माहनन्दि-मूलसंघ देशीगण और पुस्तक गच्छ के प्राचार्य माधनन्दि सिद्धान्त देव के शिष्य थे। जो रूप नारायण वसदि के आचार्य थे। शक सं० १०७३ (सन् ११५१) में कामगाबुण्ड के द्वारा बनवाए हुए मन्दिर के, जो पुल्सफपुर कोल्हापुर) में रूपनारायण वसदिके नाम से प्रसिद्ध है। पार्श्वनाथ भगवान को प्रष्ट प्रकारी पूजा के लिये, मन्दिर की मरम्मत तथा मुनिजनों के आहारार्थ विजयादित्यदेव ने अपने मामा सामन्त लक्ष्मण को प्रेरणा से भूमिका दान दिया। इस कारण अर्हनन्दि का समय ईसा की १२वीं शताब्दी का मध्यकाल है। -जैनलेख सं० भा० २१०९६ माइल्ल धवल यह द्रव्य स्वभाव नयचक्र के कर्ता माइल्ल धवल हैं। जो देवसेन के शिष्य थे। उन्होंने नयचक्र के कर्ता देवसेन गरु को नमस्कार किया है और उन्हें स्यात् शब्द से युक्त सुनय के द्वारा दुर्नय रूपो दैत्य के शरीर का विदारण करने में श्रेष्ठ वीर बतलाया है । यथा--- सियसदसुणयदुग्णयदणुबेह-विवारणेक्कवरवीरं । तं देवसेणदेवं णयचक्कयरं गुरु णमह ॥ ४२३ ग्रंथ कर्ता ने कुन्द कुन्दाचार्य के शास्त्र से सार ग्रहण करके अपने और दूसरों के उपकार के लिए द्रव्य स्वभाव नयचक्र की रचना की है। इस प्रन्थ में ४२५ गाथाएँ है । ग्रन्थ निम्न १२ अधिकारों में विभाजित है जैसा कि उसकी निम्न दो गाथाओं से स्पष्ट है :-- गुणपज्जाया दवियं काया पंचत्यि सत्त तच्चाणि । भपणे विणव पयत्या पमाण-णय तह य णिक्नेवं ।। दसणणाणचरिते कमसो उवयारभेवइयरेहि। बव्वासहावपयासे अहियारा बारसवियप्पा ॥६ गण, पर्याय, द्रव्य, पंचास्तिकाय, साततत्त्व, नौ पदार्थ, प्रमाण, नय, निक्षेप और उपचार तथा निश्चय नय के भेद से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र । इन बारह अधिकारों में द्रव्यानयोग का कथन समाविष्ट हो जाता है। क्योंकि जैन सिमान्त में छह द्रव्य पांच अस्तिकाय, सप्ततत्व, और नौ पदार्थ हैं। गण और पर्यायों काधार द्रव्य है और प्रमाण नय निक्षेप ज्ञेयों के जानने के साधन हैं। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र मोक्ष के मार्ग हैं। इस तरह इस नयचक्र में सभी शेयों का कथन किया गया है। माडल धवल ने ४२०वीं गाथा में लिखा है कि दोहों में रचित शास्त्र को सुनते ही शुभंकरने हंस दिया पौर बोला-इस रूप में यह प्रन्य शोभा नहीं देता, गाथाओं में इसकी रचना करो। सुणिऊण बोहसस्थं सिग्ध हसिऊण सहकरो भणः । एस्पण सोहा अस्थो गाहाबंधेण तं भणह ॥४२० पन्य कती ने इस दोहा बद द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र को कब किसने और कहां बनाया, इसका कोई उल्लेखनहीं किया । द्रव्य स्वभाव प्रकाय को दोहामों में रचा हुआ देखा, और उसे माइल्ल धवल ने गाथा बद्ध किया। वध्वसहावपयासं दोहयबंधेण प्रासि जं विठ्ठ। संगाहावंधेण रइयं माइल्ल धवलेण ॥४२४
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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