SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ बामनन्दि विद्य दामनन्दि मूलसंघ, देशियगण, पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्दान्वय में प्रसिद्ध गुणचन्द्र देव के प्रशिष्य और नयकीति सिद्धान्तदेव के शिष्य थे। इनके छोटे भाई बालचन्द्र मुनीन्द्र थे। सोम सेट्टि ने पार्वजिन को अष्ट विध पूजन और मन्दिर की मरम्मत और मुनियों के माहारदान के लिए दान दिया था और कुछ भूमि बालचन्द्र मुनि के पाद प्रक्षालन पूर्वक दी गयी थी। यह लेख शक सं० ११०० सन् ११७८ ईसवी का है । अतः इन दामनन्दि का समय १२वीं शताब्दी है। जैनलेख सं० भ० ३ ले. नं. ३६४ पृ०१७७ कुलचन्द्र मुनीन्द्र कुलचन्द्र सिद्धान्त मुनीन्द्र-यह कुलभूषण सिद्धान्त मुनीन्द्र के शिष्य थे । धवला की हस्तलिखित प्रतियों में सत्प्ररूपणा विवरण के अन्त में कनाड़ी प्रशस्ति पाई जाता है। उसमें तीन आचार्यों की प्रशंसा की गई है। पअनन्दि सिद्धान्त मुनीन्द्र, कुलभूषण सिद्धान्त मुनीन्द्र और कुलचन्द्र सिद्धान्त मुनीन्द्र । जितयश से उज्वल कुलचन्द्र सिद्धान्त मुनीन्द्र का उद्भव जंगमतीर्थ के समान था । वे सदा काय और मन से सच्चारित्रवान् दिनो दिन शक्तिमान् और नियमवान होते हुए उन्होंने विवेक बुद्धि द्वारा ज्ञान दोहन कर कामदेव को दूर रखा। सच्चारित्रवान् हाना हा कामदेव के क्रोध से बचने का एक मात्र मार्ग है। इससे उनकी चारित्र निष्ठता का पता चलता है। यह वही कुलचन्द्र ज्ञात होते है जिनका उल्लेख श्रवण बेल्गोल के ४०३ (६४) लेख में पाया जाता है। प्रविद्धकादिक पचनन्दी सद्धान्तकायोजनि यस्य लोके। कौमारय प्रतिताप्रसिति जोया सोज्ञाननिधिः सधीरः॥ तच्छिष्यः कुलभूषणाययतिपश्चारित्रवारानिधिस्सिद्वान्ताम्बुधिपारगो नतविनेयस्तत्सधर्मों महान । शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथितग्रन्थकारः प्रभाचन्द्राख्यो मुनिराज पंडितवरः श्रीकण्डान्वन्वयः ।। तस्य श्रीकुलभूषणात्य मुमुने शिष्ये विनेयस्तुत--- स्सयत्तः कुलचन्द्रदेव मुनिपस्सिद्धान्तविद्यानिधिः॥ इन पद्यों में मन्दि, कुलभूषण नौर कुलचन्द्र मुनियों के बीच गुरु-शिष्य परम्परा का स्पष्ट उल्लेख है। इनमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिक को, ज्ञानि निधि, सधीर, अविद्धकर्ण और कौमारदेव प्रती बतलाया है । वे कर्ण छेदन संस्कार से पहले ही दीक्षित हो गए थे। प्रतएव ने कौमारदेव व्रती भी कहलाते थे। अर्थात् वे बाल ब्रह्मचारी थे। इनके एक शिष्य प्रभाचन्द्र थे, जो शब्दामोज भास्कर और प्रथित तक ग्रन्थकार थे । कुलभूषण को चारित्र वा रानिधि और सिद्धान्ताम्बुधि पारग बतलाया है। और कुलचन्द्र को विनय, सद्वृत्त और सिद्धान्त विद्यानिधि कहा है। इनका समय सन् ११३३ के लगभग होना चाहिए । कुलचन्द्र के शिष्य माधनन्दि सैद्धान्तिक थे, जो कोल्हापुर की रूपनारायण वसदि के प्रधानाचार्य थे । इनका परिचय प्रागे दिया गया है। कुलचन्द्रमुनि-मूलसंघान्वय क्राणुरगण के विद्वान परमानन्द सिद्धान्त देव के शिष्य थे। इन्हें भुवनक मल्ल के सुपुत्र ने, जिस समय उनका राज्य प्रवर्धमान था, और जो बंकापुर में निवास करते थे। उनके पाद पंद्योप १. संतत काल कायमति सच्चरितं दिनदि दिनक्के वी ये नलेदंदु मिक्क नियमंगल नांतु विवेकबोष दोहं तवे कंतु मन्युगिदे सच्चरितं कुलचन्द्र देव सेबांत मुनीन्द्र रूजितयशोज्वल जंगमतीर्थरुद्भवम् ।। -धवला पु० २ प्रस्तावना पृ० ३
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy