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________________ ! ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान आचार्य ३३१ श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० ५४ पृ० १०६ में इन्हीं चन्द्रकीर्ति मुनि का स्मरण किया गया है श्रीर उन्हें श्रुतविन्दु का कर्त्ता भी बतलाया है : विश्वं यश्भुतविन्नावरुरुधे भावं कुशाग्रीयया, बुध्येवाति महीयसाप्रववसाबद्धं गणाधीश्वरैः । शिष्यान्प्रत्यनुकम्पया कृशमतीनेवं युगीन्दारसुगी - स्तं वाचाच चन्द्रकीति गणिनं चन्द्राभकीर्ति बुधाः ॥ ३२ - मंसूर स्टेट के तुरंकूर जिले में दो अभिलेख मिले हैं, वे पद्मप्रभ के प्रभाव क्षेत्र की अच्छी सूचना देते हैं । एक तो कुप्पी ताल्लुके के निट्टूरु में प्राप्त हुआ है जिसमें एक प्रसिद्ध धर्मात्मा महिला जैनाम्बिका का उल्लेख है जा इनकी एक शिष्या थी। दूसरा अभिलेख पाबुगड ताल्लुक के निगल्लु में पहाड़ी पर के एक जैन मन्दिर में मिला है - (एपिग्राफिया कर्नाटिका जि० १२ पाबूगड़ ५२ ) इसमें एक मुखिया गांगेयन मारेय के द्वारा एक जैन मन्दिर के निर्माण कराये जाने का उल्लेख है। इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि यह मन्दिर निर्माता नेमि पडित के द्वारा जैनधर्म में प्रविष्ट किया गया था। एपिग्राफिया कर्नाटिका जि० १२ Guvvi) | यह नेमि पंडित पद्मप्रभ मलधारी के शिष्य थे । जब इरुङ्गोल देव राज्य कर रहा था— तत्पादपद्मोपजीवी गङ्गयनमारेय गङ्गय नायक और चामासे मे उत्पन्न हुआ था । इसने नेमि पण्डित से व्रत लिये थे । नेमि पण्डित को पद्मप्रभ मलधारी देव से मनोभिलपित प्रर्थ की प्राप्ति हुई थी । प० म० देव श्री मूलसंघ, देशीयगण, कोण्डकुन्दान्वय, पुस्तक गच्छ तथा वाणद बलिय के वीरनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्ती के शिष्य थे । कालाञ्जन ( निडुगल ) पर्वत के बदर तालाब के दक्षिण की तरफ एक चट्टान के सिरे पर गंगन मारने पार्श्व जिन की बसति खड़ी की थी। इसी को 'जोगवट्टिगे बसदि' भी कहते थे । पार्श्वनाथ जिनेश की दैनिक पूजा, महाभिषेक करने के लिए, तथा चतुवर्ण को बाहार दान देने के लिए गगयन मारेय तथा उसकी स्त्री वाचले ने इरुगुल देव से प्राचन्द्र-सूर्य-स्थायी दान करने के लिये प्रार्थना की तब उसने भूमियों का दान किया, तथा मारेनहल्लि के कुछ किसानों ने मिलकर बहुत से अखरोट और पान प्रति बोझ पर दिये। पलिक किसानों ने भी कोल्हुसों से तेल दिया । यद्यप्रभ मलधारी देवकी दूसरी कृति 'लक्ष्मी स्तोत्र' है जो संस्कृत टीका के साथ मुद्रित हो चुका है । इनकी अन्य क्या रचनाएं हैं यह कुछ ज्ञात नहीं हुआ । मद्रास प्रान्त के पाटशिवरम्' नामक ग्राम के दक्षिण प्रवेश द्वार पर स्थित एक स्तम्भ के खंडित शिलालेख में बीरनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्ती के शिप्य पद्मप्रभ मलधारी देव के सम्बन्ध में निम्न श्लोक अंकित है, जिसमें उनके देहोत्सर्ग की तिथि का उल्लेख है: सवर्ष सप्तदु क्षिति ११०७ परिमितिविश्वावसु प्रान्तफाल्गुण्य कनच्छुद्धा चतुर्थीतिथितभरणी सोमवारार्द्ध रात्रा fusersarienate निम्मं लमति मल्लम्टं नामपद्मप्रभं । पुस्तक गच्छं मूलसंघ प्रतिपतिनुस देसीगण मुक्तनावं || ११०७ विश्वावसु, फाल्गुण शुक्ला ४ भरणी, सोमवार को -- २४ फर्वरी सन् ११८५ ई० सोमवार के दिन पद्मप्रभ मलधारी देव का स्वर्गवास हुआ। यह लेख पश्चिमीय चालुक्य राज्यकाल का है । ( Jainism in South India P. 159 ) शक संवत् (वि० सं० १२४२) को नरेश सोमेश्वर चतुर्थी के १. निरुङ्गी-देवं राज्यं गेम्युत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवियप गङ्गयनायक' 'जामाङ्ग नेगवुद्भविसि गङ्गयन मारेयं श्री मूल संवद देशिय गणद कोण्डकुन्दान्वव पुस्तक गच्छद वादयनिय श्री वीरनन्दि- सिद्धान्त - चक्रवतगिल शिष्यराद मेदिनी सिद्धर पद्मप्रभ- मलधारि देवर चरण-परिचर्येय पर्याप्त कामिदराद मिति निङ्गीकृतवत नादम् । - जैनलेख सं० भा० ३५० ३३२
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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