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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, और आचार्य
जब वह युवा हुअा तब बहुत उत्पाद मचाने लगा। नगर के सेठों ने मिलकर विचार किया कि यह युवतियों से छेड़ खानी करता है, अत: उसे कंचनपुर जाने के लिए तैयार करना चाहिए। मन्त्रीजन व्यवसाय के निमित्त अन्धुदत्त को भेजने के लिये तैयार हो गये । और बन्धु दत्त को अपने साथियों के साथ कंचनद्वीप जाने हुए देखकर भविग्यदन भी अपनी माता के बार-बार रोके जाने पर भी उनके साथ हो लिया । जब सरूपा को पता चला तो बन्धुदत्त को शिना कर कहा कि तुम भविष्यदत्त को किसी तरह समुद्र में छोड़ देना। जिससे बन्धु-बान्धवों से उसका मिलाप न ही सके। परन्तु भविष्यदत्त की माता उसे उपदेश देती हुई कि परधन और परनारी को स्पर्ग न करने की शिक्षा देती है। पांचसौ बणिकों के साथ दोनों भाई जहाज में बैठकर चले। कई द्वीपान्तरों को पारकर उनका जहाज मदनाग द्वीपके समुद्र तट पर जा लगा। प्रमुख लोग जहाज से उतर कर मदनाग पर्वत को शोभा देखने लगे। बन्धुदत्त धोखे से भविष्यदत्त को बहीं एक जंगल में छोड़कर अपने साथियों के स थ-साथ आगे चला जाता है। बेचारा भविष्यदत्त इधर-उधर भटकता हुआ उजड़े हुए एक समद्ध नगर में पहुँचता है । और वहां के जिनमन्दिर में चन्द्रप्रभ जिनकी पूजा करता है। उसी उजड़े नगर में वह एक सुन्दर युवती का देखता है। उसा से भविायदत्त को पता चलता है कि वह समृद्ध नगर असुरों द्वारा उजाड़ा गया है । कुछ समय बाद वह असुर वहां पाता है और भविष्यदत्त का उस सुन्दरी से विवाह कर देता है।
इधर पुत्र के चिरकाल तक न लाटने से कमल श्री सुखता नामकी आर्यिका से उसके कल्याणार्थ श्रतपंचमी व्रत' का अनुष्ठान करती है। उधर भविष्यदत्त भी मा का स्मरण होने से सपत्नीक और प्रचुर सम्पत्ति के साथ घर लौटता है । लौटते हुए उनकी बन्धुदत्त से भंट हो जाती है, जो अपने साथियों के साथ यात्रा में असफल हो विपत्ति दशा में था। भविष्यदत्त उनका सहर्ष स्वागत करता है, किन्तु वन्धुदत्त को धोखे से वहीं छोड़कर उसकी पत्नी पौर प्रभूत धन राशिलेकर साथियों के साथ नौका में सवार हो वहां से चल देता है। मार्ग में उनको नौका पुनः पथ भ्रष्ट हो जाती है। और वे जैसे तैसे गजपूर पहंचते है। घर पहंच कर बन्धुदत्त भविष्यदत्त की पत्नी को अपनी भावी पत्नी घोषित करता है उनका विवाह निश्चित हो जाता है। कमलश्री लोगों से भविष्यदत्त के विषय में पूछती है, परन्तु कोई उसे स्पष्ट नहीं बतलाता। कमलथी मुनिराज से पुत्र के सम्बन्ध में पूछती है । मुनिराज ने कहा तुम्हारा पुत्र जीवित है, वह यहां प्राकर प्राधा राज्य प्राप्त करेगा । एक महीने बाद भविष्यदत्त भी एक यक्ष की सहायता से गजपुर पहुंचता है। और अपनी माता से सब बृत्तान्त कहता है, माता को वह नागमुद्रिका देकर उसे भविष्यानुरूपा के पास भेजता है । तथा स्वयं अनेक प्रकार के रत्नादि लेकर राजा के पास जाता है, और उन्हें राजा को भेंट करता है। भविष्यदन्त राजा को सब वृत्तान्त सुनाना है, परिजनों के साथ वह राजसभा में जाता है और बन्धुदत्त के बिबाह पर आपत्ति प्रकट करता है । राजा धनवइ का बुलाता है। प्रोर बन्धुदत का रहस्य खुलने पर राजा क्रोधवश दोनों को कारावास का दण्ड देता है। पर भविष्यदत्त धनवा को छुड़वा देता है। राजा जय लक्ष्मी और चन्द्रलेखा नाम की दो दापियों को भविष्यानुरूपा के पास भेजता है वे जा कर भविष्यानुरूपा से कहती हैं । राजा ने भविष्यदत्त को देश मे निकालने का मादेश दिया है और बन्धुदत्त को सम्मान 1 अतः अव तुम बन्धुदत्त के साथ रहो । किन्तु वह भविष्यदत्त में अपनी अनुरक्ति प्रकट करती है। धनवइ नव दम्पति को लेकर घर पाता है। कमल श्री व्रत का उद्यापन करती है, वह जैन संघ को जेवनार देती है, वह पिता के घर जाने को तैयार होती है। पर कंचन माला दासी के कहने पर सेठ कमलथी से क्षमा मांगता है। राजा सुमित्रा के साथ भविष्यदत्त का विवाह करने का प्रस्ताव करता है ।
कुछ समय के बाद पांचाल नरेश चित्रांग का दुत राजा भूपाल के पास पाता है, और कर तथा अपनी कन्या सुमित्रा को देने का प्रस्ताव करता है । राजा असमन्जस में पड़ जाना है, भविष्यदत्त युद्ध के लिये तैयार होता है। और साहस तथा धैर्य के साथ पांचाल नरेश को बन्दी बना लेता है, राजा सुमित्रा का विवाह भविष्यदत के साथ करता है और राज्य भी सौंप देता है।
कुछ दिनों बाद भविष्यानुरूमा के दोहला उत्पन्न होता है और वह तिलक द्वोप जाने की इच्छा करती है, भविष्यदत्त सपरिवार विमान में बैठ कर तिलक द्वीप पहुंचना है और वहां जिनमन्दिर में चन्द्रप्रभ जिनको सोत्साह पूजन करता है और चारण मुनि के दर्शन वार श्रावक धर्म का स्वरूप सुनता है। अपने मित्र मनोवेग के