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________________ २०६ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ प्राचार्य अमृतचन्द्र की इस मान्यता को उत्तरवर्ती विद्वान आचार्यों ने (सोमदेव, देवतेन, पं० प्राशाधर ने) अपने ग्रन्थों में अपनाया है। इन सब प्रमाणों से ज्ञात होता है कि कवि धनपाल दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान थे। भविष्यदत्त कथा प्रस्तत कथा अपभ्रंश भाषा की रचना है। प्रस्तुत कृति में ३४४ कडवक हैं। जिनम शुन पंचमी के व्रत का महात्म्य बतलाते हए उनके अनुष्ठान करने का निर्दश किया गया है। साथ ही भविष्यदत्त और कमलथो के चरित्र-चित्रण द्वारा उसे और भी स्पष्ट किया गया है। ग्रन्थ का कथा भाग तीन भागों में बांटा जा सकता है। चरित्र घटना बाहल्ल होते हुए भी कथानक सुन्दर बन पड़े हैं। उनमें साधु-असाध जीवन वाले व्यक्तियों का परिचय स्वाभाविक बन पड़ा है। कथानक म अलोकिक घटनाओं का समीकरण हुआ है, परन्तु वस्तु वर्णन में कवि के हृदय ने साथ दिया है । अतएव नगर, देशादिक और प्राकृतिक वर्णन सरस हो सके हैं। ग्रन्थ में रस और अलंकारों के पूट ने उसे सुन्दर और सरस बना दिया है । ग्रन्थ में जहां शृगार, वीर और शान्तरस का वर्णन है वहाँ उपमा, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति पार विरोधाभास आदि अलंकारों का प्रयोग भी दिखाई देता है । भाषा में लोकोक्तिया और वाग्धाराओं का प्रयोग भी मिलता है। यथा--कि घिउ होइ विरोलिए पाणिए-पानी के विलौने से क्या धी हो सकता है। अण इच्छियहोति जिय दुक्खई सहसा परिणति तिह सोक्खई(३-१०.८) जैसे यदृच्छया दुख पात हे वसे हो सहसा सुख भी पा जाते हैं । जोवण विद्यारसवस पसरि सो सून सो पडियउ। चल मम्मण वयणुल्लायएहि जो परहि न खडियउ। (३-१८-९) बही शुर बीर है और वहीं पंडित है, जो योवन के पिय-विकारों के बढ़ने पर स्त्रियों के चचल कामोद्दीपक वचनों से प्रभावित नहीं होता। जहां जेणदत्तं तहातेण पत्तं इमं सुच्चए सिट्ठ नोएण वृत्तं । सुपायन्नया कोदवा जत्त माली कहं सो नरोपःपए तस्थसाली 1 जो जैसा देता हैं, वैसा ही पाता है। यह शिष्ट लोगों ने सच कहा है। जो माली कोदों दोवेगा वह शाली कहां से प्राप्त कर सकता है इन सुभाषतों और लोकोक्तियों से ग्रन्थ और भी सरस बन गया है। ग्रन्थ का कथा भाग तीन भागों में बांटा जा सकता है। यथा१. व्यापारी पुत्र भविष्यदत्त की संपत्ति का वर्णन, भविष्यदत्त, अपने सौतेले भाई अन्धुदत्त से दो बार धोखा खाकर अनेक कष्ट सहता है, किन्तु अन्त में उसे सफलता मिलती है। २. कुरूराज और तक्षशिला नरेशों में युद्ध होता है, भविष्य दत्त उसमें प्रमुख भाग लेता है, और उसमें विजयी होता है। ३. भविष्यदत्त तथा उसके साथियों का पूर्व जन्म वर्णन। कथा का संक्षिप्त सार भरत क्षेत्र के कुरुजांगल देश में गजपुर नाम का एक सुन्दर और समृद्ध नगर था। उस नगर का शासक भूपाल नाम का राजा था। उसी नगर में धनपाल नाम का नगर सेठ रहता था। वह अपने गुणों के कारण लोक में प्रसिद्ध था। उसका विवाह हरिबल नाम के सेठ को सुन्दर पुत्री कमलश्री से हुयापा। वह अत्यन्त रूपवती और गुणवतो थी। बहुत दिनों तक उसके कोई सन्तान न हई, अतएव बह चिन्तित रहती थी। एक दिन उसने अपनी चिन्ता का कारण मूनिवर से निवेदन किया । मुनिवर ने उत्तर में कहा, तेरे कुछ दिनों में विनयी, पराक्रमी और गुणवान पुत्र होगा। और कुछ समय बाद उसके भविष्यदत नाम का पुत्र हुमा । वह त लिखकर सव कलानों में निष्णात हो गया। धनपान मरूपा नाभ की पुत्री से अपना दूसरा विवाह कर लेता है। उसके बन्धुदान नाम का पुत्र हमा।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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