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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान आचार्य
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से रहित, पापांक नाशक, महाव्रत के पालक और मुनियोंमें श्रेष्ठ थे। जैसा कि नागकुमार चरित के निन्न पद्य से स्पष्ट है
अजनि तस्य मुनेवर दीक्षितो विगतमानमदो दुरितान्तकः । कनकसेनमुनि मुनिपुंगवो,
वरचरित्रमहाव्रतपालकः ॥
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वे जिनागम के वेदी, संसार रूप वन का उच्छेद करने वाले और कर्मेन्धन के जलाने में पटु थे । जैसा कि भैरव पद्मावती कल्पकी प्रशस्ति के निम्न पद्य से प्रकट है :
जिन समयागमवेदी गुरुतर संसारकाननोच्छेदी । कर्मेन्धनदहनपटुस्तच्छिष्य: कनकसेनगणिः ॥५६
इन कनकसेन के शिष्य जिनसेन थे और सतीर्थं थे नरेन्द्रसेन । मल्लिषेण इन्हीं जिन सेन के शिष्य थे । सतीर्थ होने के कारण मल्लिषेण ने नरेन्द्रसेन का गुरु रूप से स्मरण किया है। चूंकि मल्लिषेण ने अपना महापुराण सं० ६६६ (सन् १०४० ई० ) समाप्त किया है। अतः कनकसेन का समय दशवीं शताब्दी का उपान्त्य है । शक् नरेन्द्रसेन ( प्रथम )
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नरेन्द्रसेन नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। एक नरेन्द्रसेन अजितसेन के शिष्य कनकसेन द्वितीय (सन् ६६० ई०) के शिष्य और जिनसेन के सधर्मा थे। वादिराज ने शक वर्ष ९४४ (सन् १०२५) में इन्हीं नरेन्द्रसेन का स्मरण किया है । क्योंकि उसमें कनकसेन के साथ नरेन्द्रसेन का भी उल्लेख है। देखो (न्याय विनिश्चय विवरण प्रशस्ति ) मल्लिषेण सूरिने जो जिनसेन के शिष्य थे। अपने गुरु भाई नरेन्द्र सेन को नागकुमार चरित की प्रशस्ति में उज्ज्वल चरित्रवान, प्रख्यातकीर्ति, पुण्य मूर्ति, तत्वज्ञ और कामविजयी बतलाया है जैसाकि नागकुमार चरित की प्रशस्ति के निम्न पद्य से प्रकट है
तस्यानुजाश्चारु चरित्र वृत्तिः प्रख्यातकीर्त भुविपुष्यभूतिः । नरेन्द्रसेनो जितवा विसेनो विज्ञानतत्त्वो जितकामसूत्रः ॥४ जिनसेन के सधर्मा होने से मल्लिषेण ने इन्हें भी अपना गुरु माना है । तच्छिष्यो विभुवाप्रणोगं गनिधिः श्रीमहिलषेणाह्यः । संजातः सकलागमेषु निपुणो वाग्देवतालंकृतिः ॥
इन, नरेन्द्रसेन का समय पी० बी० देसाई ने सन् १०२० ई० बतलाया है। इनके शिष्य नयसेन प्रथम ये । जिनका समय पी० बी० देसाई ने सन् १०५० ई० बतलाया है ।
चालुक्य चक्रवर्तित्रैलोक्यमल्ल सोमेश्वर (सन् १०५३ - १०६७ ) के शासन काल में उसके सन्धि विग्रहाधिकारी बेलदेव की प्रार्थनानुसार सिन्दकंचरस ने मूलगुन्द के जिन मन्दिर को भूमिदान देने का प्रस्ताव किया है । उसमें मुख्यतः बेलदेव के गुरु नयसेन और नयसेन के गुरु नरेन्द्रसेन का वर्णन दिया है।
नरेन्द्रसेन द्वितीय त्रैविद्यचक्रेश्वर
प्रस्तुत नरेन्द्रसेन मूल संघ सेनान्वय चन्द्रकवाट ग्रन्वय के इन्हीं नयसेन के शिष्य थे। और व्याकरण शास्त्र के महान पंडित थे । चालुक्य चक्रवर्ती भुवनकमल्ल सोमेश्वर द्वितीय (सन् १०६८ ) से पूजित गुणचन्द्र देव ने नरेन्द्रसेन मुनि को 'विद्य' बतलाया है मूलगुन्द के सन् १०५३ के शिलालेख में नरेन्द्रसेन को व्याकरण का पंडित बतलाते हुए लिखा है कि- 'चन्द्र, कातंत्र, जैनेन्द्र शब्दानुशासन, पाणिनी, इन्द्र यादि व्याकरण ग्रंथ नरेन्द्रसेन के लिये एक अक्षर के समान हैं। यथा-
१ Jainism in South India p. 139
२ जैन लेख मं० भा० ४० ११५ में लक्ष्मेश्वर (मैसूर) का लेख १६५
६ जैन लेख संग्रह भाग ४ पू० ६० में मूल गुन्दका सम्० १०५३ का लेख