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________________ ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य २७ इसमें गृहस्थ और मुनियों के माचार का व्यवस्थित वर्णन है। उसका संकलन सम्बद्ध और सुन्दर है। कथन की सम्बद्धता ही उसको प्रमाणिकता का मापदण्ड है, यह मन्थ हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो गोम्मटसार की देशी कर्णाटक वृत्ति भी इनकी बनाई हुई कहो जाती है पर वह अभी तक उपलब्ध नहीं चिककवेष्ट पर इनके द्वारा एक वसदि बनाये जाने का उल्लेख मिलता है। इनके पुत्र का नाम जिनदेवण ' था, जो अजितसेनाचार्य का शिष्य था। जिनदेवण ने श्रवणवल्गोल में जिन मन्दिर का निर्माण कराया था। यह लेख शक सं० ६६२ (सन् १०४०) में उत्कीर्ण किया गया है। महाकवि वीर कवि वीर लाडवागड़ वंश के गृहस्थ विद्वान् थे। इनके पिता का नाम देवदत्त था, जो मच्छे विद्वान कत्रि थे । इनके पुत्र वीर कवि से अपने पिता की चार कृतियों का उल्लेख किया है। पद्धडिया छन्द सरस चच्चरिया बंध में शान्तिनाथ का महान यशोगान (शान्तिनाथ रास) विद्वत्सभा का मनोरंजन करने वाली सुखम बीर कथा, और मम्बादेवी का रास । खेद है कि कवि देवदत्त की ये चारों रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं । कवि मालवा के गुडलेड ग्राम के निवासी थे । गुडखेड नाम का यह गांव मालवा में सियवर्षी नगरी के सन्निकट कहीं बसा हया था। पूर्व मालवा में जमुना से निकलने वाली एक छोटो नदी का नाम काली सिन्धु या सिन्धु नदी है। यह नदी प्राचीन दशार्ण क्षेत्र में जिसकी प्राचीन राजधानी विदिशा थी, मे बहती हुई पद्मावती नामक स्थान पर पाकर चर्मण्वती (चंबल) नदी से भोपाल के निकट निकलने वाली पारा नदी में मिल जाती है। सौर मागे जाकर दोनों नदियां वेतवा में गिर जाती हैं । इसी सिन्धु नदी के किनारे पर भोपाल के पूर्व प्रौर विदिशा से उत्तर में सिन्धुवर्षी नगरी रही होगी। इस नगरी बसीप ही नहीं डाग बसा हारमोगा । कवि देवदत्त का समय सं० १०५० है 1 कवि का अम्बादेवी रास ताल और लय के साथ गाया जाता था। और जिन परणों के समीप नृत्य किया जाता था, यह सम्यक्त्वरूपी महाभार की धुरा के धारक थे। कवि देवदत्त की संतुवा भार्या से विनम्र सम्पन्न वीर नाम का पुत्र उत्पन्न हुया था। कवि के बुद्धिमान तीन छोटे सहोदर भाई मोर भी थे। जो सीहल्ल, नक्षणांक पोर जसई नामों से विख्यात से। वीर फवि ने कहा मौर किससे शिक्षा प्राई, इसका कोई उल्लेख नहीं किया। कवि ने शब्द शास्त्र, छन्द शास्त्र, निचंद, तर्कशास्त्र तथा प्राकृत काव्य सेतुबंध का अध्ययन किया था, सिद्धान्त शात्रों के अध्ययन के साथ लौकिक शिक्षा में भी निपुणता प्राप्त की थी। केवल काव्य रचना उनके जीवन का व्यापार नहीं था किन्तु वह राज्य कार्य, प्रर्थ और काम की चर्चाओं में भी संलग्न रहता था । व्यस्त जीवन रहने से हो उसे जंबूस्वामी चरित की रचना में एक वर्ष का समय लगा था। कवि की चार स्त्रियां थीं। जिनवती, पोमावती, लीलावती और जयादेवी। पहली पत्नी से नेमचन्द्र नाम का एक पुत्र भी १. जिन ग्रहय बेलगोलदोल जनमेल्ल पोगले मन्त्रि-चाम पडन नन्दनोलवि माहिसिदं ज़िन-देवणनजिनसेन-मुनिवर गुई ॥ -नलेख सं० भा०११० १४६ १.६ह अस्थि परम जिण पयमरा, गुललेड विणिगरउ मुहचरणु । सिरिलाइयागु तहि विमलजसु, कर देषयतु लिम्बूङ कसु । बहु भावहि जे घरगचरिउ, पनियाभे उरिउ । कविगुणरस नियविउसह, वित्तरिय सुदय वीर कह । बच्चरिययंधि विरह सरसु, गाइजह सतिज तारजम् । नचिरजइ जिणपय . सेवहि, किउ रासउ अंबादेवयहि । सम्मसमहाभरपुरधरहो, तहो सरसहदेखि लवबरहो। --अंधू सामिचरिउ १-४
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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