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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २ असाधारण ख्याति पाई है। पौल्न तो बाण की बराबरी करते हैं। नयसेन ने अपने धर्मामृत के ३६ व पद्य के निम्न वाक्य द्वारा 'असगन देसि पोन्नत महोत्तन तिवेत वेडगं, असग और पौन्न का नामोल्लेख किया है । पौन्त ने स्वयं शान्तिनाथ पुराण (६५०ई०) में कन्नड़ कविता में अपने को-'कन्नजकवितेयोल प्रसगम्, वाक्य द्वारा प्रसग के समान होना बतलाया है । राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने जिसका दूसरा नाम अकालवर्ष था । इनका राज्य काल शक सं०८६७ से ८१४, (सन् १४५ से १७२) तक था । इसे उभयकवि चक्रवर्ती का सम्मान सूचक पद प्रदान किया था, ऐसा जन्न के यशोधर चरित्र से जो ईस्वी सन् १२०६ में बना है मालूम होता है दुर्गसिंह (सन् ११४५) के एक पद्य से भी इसका साक्ष्य मिलता है । इसके बनाये हुए शान्तिनाथ पुराण और जिनाक्षर माला ये दो अन्य उपलब्ध हैं। शान्तिनाथ पुराण, जिसमें सोलहवें तीर्थकर का जीवन वृत्त अंकित है। गद्य-पद्य मय चम्पूकाव्य है। इसके बारह अाश्वास हैं । इस ग्रन्थ को कदि पुराण चूड़ामणि भी कहते हैं। इसकोक विता बहुत ही सुन्दर है। वेगी देश के कम्मेनाडिका पं गन् र नामक गांव के रहने वाले कौडिन्य गोत्रोद्भव नागमय्य नामक, जैन ब्राह्मण के मल्लय और पुन्निमय्य नाम के दो पुत्र थे जो बाद में तलपदेव के सेनापति हो गये थे | अपने गुरु जिनचन्द्र देव के प्रति परोक्ष बिनय प्रगट करने के लिए कवि पौन्न से शांतिनाथ पुराण बनाने का अनुरोध किया था। उन्हीं के अनुरोध से इस ग्रन्थ की रचना हुई है ऐसा अन्य प्रशस्ति पर से ज्ञात होता है । जिनाक्षर माला छोटी-सी स्तवनात्मक कविता है। जो वर्णानुक्रम से बनाई गई है। शान्तिनाथ पुराण के अन्त के एक पद्य से मालूम होता है कि इस कवि के बनाये हुए दो नन्थ और हैं। एक राम कथा या भवनक रामाभ्युदय और दूसरा गतप्रत्यागतवाद । यह दूसरा ग्रन्थ संस्कृत में है। मा-कोई विद्वान इनका बनाया हमा अलंकार ग्रन्थ भी बतलाते हैं परन्तु ये तीनों ग्रन्थ अनुपलब्ध है । प्रजितपुराण के एक पद्य से ज्ञात होता है कि पाप पौन्न पौर रन्न तीनों कवि कन्नड़ साहित्य के रत्न हैं। पोन्न कवि की उत्तरवर्ती जैन-जनेतर कवियों ने प्रशंसा की है। पार्श्व पण्डित (ई० सन् १२०६), नयसेन (१११२), नागवर्म (११४५) रुद्रभद्र (१९८०) केशिराज (१२६०) मधुर (१३८०) आदि । इन कवियों के कन्नड़ी ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद होना आवश्यक है जिससे हिन्दी भाषी जनता भी उससे लाभ उठा सके। चूकि कवि ने अपना शान्तिनाथ पुराण सन् ६५०ई० में बनाया था। कवि का समथ १०वीं शताब्दी है। कवि रत्न रन्न कवि का जन्म सन् १४६ ईस्वी में 'मृदुबोल' नाम के ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम जिनवल्लभेन्द्र और माता का नाम अब्बलब्बे था। यह जैनधर्म के संपालक वैश्य (वनिया) थे। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अपना जीवन निर्वाह चूड़ी बेच कर करते थे। इस कारण वे अपनी संतान की शिक्षा का उचित प्रबन्ध नहीं कर पाते थे। किन्तु रन्न जन्म से ही होनहार, सुभग चारित्रवान और उत्तम प्रकतियों का धनी था। वह मेधावी और भाग्यशाली था । इसको देखते ही अनजान आगन्तुक भी अपनाने लग जाते थे। वह पड़ोसियों के लिये अत्यन्त प्रिय था। उसके माता-पिता का उस पर अपार प्रेम था । उसको ग्रहण-धारण की शक्ति और प्रतिभा बाल्यकाल से ही आश्चर्य जनक थी। उसने बाल्यकाल में अपना समय अध्ययन में ध्यतीत किया था । कुमार अवस्था में भी उसको विशेष रुचि अध्ययन की पोर थी। आर्थिक परिस्थिति ठीक न होने पर भी उसने अपनी हिम्मत नहीं हारी। किन्तु वह दृढव्रती रह अपने उद्देश्य की पूर्ति करने के प्रयत्न में संलग्न रहता था। एक दिन वह घर से बंकापुर चला गया। उस समय बंकापुर विद्या का केन्द्र बना हुआ था। वहां कई विद्यालय थे, जिनमें शिक्षा दी जाती थी। वह अजितसेनाचार्य के पास पहुँचा, उनके दर्शन कर उसका मन हर्षित हमा, उसने उन्हें नमस्कार किया । प्राचार्य ने पूछा तुम्हारा क्या नाम है और यहाँ किस लिये पाये हो । उसने कहा, भगवन ! मेरा नाम रन्न है और यहां विद्याध्ययन करने की इच्छा से पाया है। प्राचार्य ने उसकी रुचि विद्याध्ययन की देख उसकी सब व्यवस्था करा दी। रन्न मेधावी और परिश्रमी छात्र था, उसने बड़ी लमन से वहाँ सिद्धान्त
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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