SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमी-दशवीं शताब्दी के आचार्य दिया । आपकी कृति 'प्रद्युम्न चरित' नामक महाकाव्य है । जिसके प्रयेत्क सर्ग की पुत्रिका में श्रीसिन्धुराज सत्क महामहत्तम श्री पर्पट गुरो: पंडित श्रीमहासेनाचार्यस्य कृते । वाक्य उल्लिखित मिलता है जिससे स्पष्ट है कि पर्पट महासेन के शिष्य थे । और जैन धर्म के संपालक थे । यह एक सुन्दर काव्य ग्रन्थ है। इस में १४ सर्ग हैं, जिनमें श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार का जीवन परिचय अंकित किया गया है, जो कामदेव थे। जिसे कवि ने ससारविच्छेदक बतलाया है। इसकी कथा वस्तु का आधार स्रोत हरिवंश पुराण है। हरिवंश पुराण में यह चरित ४७ वें सग के २०वें पद्म से ४८वें सर्ग के ३१ वें पद्य तक पाया जाता है । काव्य का कथा भाग बड़ा ही सुंदर रस और अलंकारों से अलंकृत है । इस ग्रन्थ में उपजाति, वंशस्थ शार्दूलविक्रीडित, रथोद्धता, प्रहर्षिणी, द्रुतविलम्बित, पृथ्वी, अनुष्टुभ उपेन्द्रबच्चा, हरिणी, स्वागता, मालिनी, ललिता, शालिनी, और बसन्ततिलका आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। कथा का नायक पौराणिक व्यक्ति है परन्तु उसका जीवन अत्यन्त पावन रहा है । २१५ कवि महासेन ने ग्रंथ में रचना काल नहीं दिया, किन्तु शिलालेखों आदि पर से मुंज और सिन्धुल का काल निश्चित है । राजा मुंज के दो दानपत्र वि० सं० २०३१ और १०३६ के मिले हैं। सं० १०५० और सं० १०५४ के मध्य किसी समय तैलपदेव ने मुंज का वध किया था। इन्हीं राजा मुंज के समय १०५० में अमितगति द्वितीय ने अपना सुभाषितरत्नसन्दोह समाप्त किया था । श्रतः यही समय आचार्य महासेन का होना चाहिए। यह ईसा की १०वीं शताब्दी के प्राचार्य हैं । श्रादि पंप इनका जन्म सन् १०२ में ब्राह्मण कुल में हुआ था। पिता का नाम अभिरामदेवराय था । जो पहले वेदानुयायी था और बाद को वह जैनधर्म का उपासक हो गया था। यह पुलिगेरी चालुक्य राजा अरिकेशरी का दरबारी कवि और सेनापति था । और कनड़ी भाषा का श्रेष्ठ कवि समझा जाता था। इसकी दो कृतियां उपलब्ध हैं। एक प्रादि पुराण और दूसरा भारतचम्पू । आदि पुराण गद्य-पद्यमय चम्पू है, जिसे कवि ने ३९ वर्ष की अवस्था में तीन महीने में बनाकर समाप्त किया था । ग्रन्थ में १६ परिच्छेद या अध्याय हैं । इस ग्रन्थ का गद्य ललित, हृदयंगम, गंभीराशय और भावपूर्ण है और पद्य मोती की लड़ियों के समान है। भाषा शैली सर्वोत्कृष्ट है। इस ग्रन्थ के आदि में समन्तभद्र, कवि परमेष्ठी, पूज्यपाद, गृद्धपिच्छाचार्य, जटाचार्य, श्रुत कीर्ति, मलधारि, सिद्धान्त मुनीश्वर, देवेन्द्र मुनि, जयनंदि मुनि श्रौर कलंक देव का उल्लेख किया है। 1 कवि की दूसरी कृति भारतचम्पू' है जिसे कवि ने छह महीने में बनाकर पूर्ण किया था। इसमें १४ प्राश्वास हैं। जिसमें पाण्डवों के जन्म से लेकर कौरवों के वध तक की घटना अ ंकित है । और राज्याभिषेक हो चुकने पर ग्रन्थ समाप्त किया गया है। यह ग्रन्थ कनड़ी साहित्य में वे जोड है इसमें कवि को आश्रय देने वाले राजा अरिकेसरी का अर्जुन के साथ साम्य दिखलाया गया है। इस ग्रन्थ की रचना से प्रसन्न होकर अरिकेसरी ने कवि को बच्चे सासिर' प्रान्त का 'धर्मपुर नाम का एक ग्राम भेंटस्वरूप दिया था । कवि ने यह ग्रन्थ शक सं० ८६३ सन् ६४१ श्रीर वि० [सं० ६६८) में बनाकर समाप्त किया था । अतः कवि दशवीं शताब्दी के विद्वान है । कवि पौन्न पोरन कनड़ी भाषा का प्रसिद्ध कवि हुआ है। कवि चक्रवर्ती, उभयचक्रवर्ती, सर्वदेव कवीन्द्र और सौजन्य कुकुर आदि इसकी उपाधियां थीं। इसके गुरु का नाम इन्द्रनंदि था । कन्नड़ साहित्य में पम्प, पौन्न और रन्न ने ३. श्री भूयतेरनुचरो भवतो विवेकी शृंगार भावधनसागररागणारं । काव्यं विचित्र परमाद्भुतवर्ण-गुम्फं संलेख्य कोविद जनाय दक्ष सुवृत्तं ॥ ६ वही प्रशस्ति
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy