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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २
सेन विद्यानन्द से भी पूर्ववर्ती हैं। संभवतः उनका कोई दार्शनिक ग्रंथ रहा है जिसकी उक्तियों से उन्होंने उक्त ग्रंथ को वर्धमान बतलाया है। मल्लिषेण प्रशस्ति में अकलंक से पहले और सुमति देव के बाद कुमार सेन का उल्लेख किया गया है
उदेश्य सम्यग्विशि दक्षिणस्यां कुमारसेनो मनिरस्तमापत् ।
तव चित्र जगबैंकभानोंस्तिष्ठत्यसौ तस्य तथा प्रकाशः ॥१४॥ डा. महेन्द्र कुमार जी ने कुमार सेन का समय ई०७२०-से ८०० तक बतलाया है। चूंकि कुमारसेन का स्मरण पुन्नाट संघीय जिनसेन ने किया है जिनका समय शक सं० ७०५ ई० सन् ७५३ है। इससे कुमारसेन सन् ७८३ से पूर्ववर्ती हैं।
कवि परमेश्वर (कवि परमेष्ठी) प्राचार्य जिन सेन ने इन्हें (कवि परमेश्वर को) कवियों द्वारा पूज्य तथा कवि परमेश्वर प्रकट करते हुए उन्हें शब्द और अर्थ के संग्रह रूप (बागर्थसंग्रह) पुराण का कर्ता बतलाया है। और जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने उक्त वागर्थसंग्रह पुराण को गद्यकथामात्र, सभी छन्द और अलकार का लक्ष्य, सूक्ष्म अर्थ और गढ़ पद रचना वाला बतलाया है। चामुण्डराय ने अपने पुराण में कवि परमेश्वर के अनेक पद्य उद्धृत किये हैं जिससे डा. ए. एन. उपाध्ये एम० ए० डीलिट् कोल्हापुर ने उसे गद्य-पद्यमय चम्पू होने का अनुमान किया है। यह अनुमान प्रायः ठीक जान पड़ता है। जिनसेन और गुणभद्र ने उसका प्राश्रय जरूर लिया होगा। कवि परमेश्वर का मादि पंप. अभिनव पंप, नयसेन, अग्गल देव भौर कमलभव प्रादि अनेक विद्वानों ने पादर के साथ स्मरण किया है, जिससे वे बडे विद्वान जान पड़ते हैं। परन्तु उनकी गुरु परम्परा प्रौर गणनाच्छादि का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं हया। इस कारण उनका निश्चित समय बतलाना शक्य नहीं है, किन्तु इतना अवश्य है कि वे आदि पुराणकार जिनसेन से पूर्ववर्ती हैं । संभवत: उनका समय वि. की ८वीं शताब्दी जान पड़ता है।
काणभिक्षु काभिक्ष-कथालंकारात्मक ग्रन्थ के रचयिता थे। प्राचार्य जिनसेन ने इनके ग्रन्थ का उल्लेख करते हए लिखा है कि-धर्मरूप सूत्र में पिरोये हुए जिनके मनोहर वचन रूप निर्मल मणि कथा शास्त्र के अलंकार बन गये । उन काण भिक्षु की जय हो।
"धर्मसूत्रानुगा हवा यस्य वाड.मणयोऽमलाः । कथालंकारतां भेजुः काणभिक्षु जयत्यसौ ।।" (आदि पुराण १-५-५१)
१.स पूज्यः कविभिलौके कवीनां परमेश्वरः ।
वागर्थसंग्रह कृत्स्नं पुराणं यः समनहोत् ।।आदि पु. १,६० २. कविपरमेश्वर निगदित गद्यकथामातृमं पुरोषचरितम् । सकलच्छन्दोलकृति लक्ष्यं मूक्ष्मार्थगूढ पद रचनम् ॥
-उत्तर पुराण प्रश०१७ ३. देखो, जैन सिद्धान्त भास्कर भा.१३ किरण २