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से आठवीं शताब्दी के आचार्य
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व्याकरण के व्यवस्थित रूप का समय ईसा की छठी शताब्दी के बाद ईसा की सातवीं शताब्दी के लगभग रखा जा सकता है ऐसा लिखा है। चण्ड के प्राकृत लक्षण में योगेन्दु का एक दोहा उबूत है— काल लहेबिणु जोइया जिम जिम मोहु गले तिम तिम दंसणु ल जो जिय में अप्पु मृणे ॥
इस कारण योगेन्दु का समय छठी शताब्दी मानना उपयुक्त है । सम्भव है वे छठी के उपान्त्य समय और सातवीं के प्रारम्भ समय के विज्ञान हों।
पात्रकेसरी
पात्रकेसरी - एक ब्राह्मण विद्वान थे, जो हिच्छत्र के निवासी थे। यह वेद वेदांग आदि में अत्यन्त निपुण थे। उनके पांच सौ विद्वान शिष्य थे, जो अवनिपाल राजा के राज्य कार्य में सहायता करते थे। उन्हें अपने कुल का (ब्राह्मणत्व का) बड़ा अभिमान था। पात्र केसरी प्रातः सौर सायंकाल सन्ध्या वन्दनादि नित्य कर्म करते थे और राज्य कार्य को जाते समय कौतूहल वश वहाँ के पार्श्वनाथ दि० मन्दिर में उनकी प्रशान्त मुद्रा का दर्शन करके जाया करते थे।
१. अहिच्छत्र किसी समय एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर था। इस पर अनेक वंशों के राजाओं ने शासन किया है। इसके प्राचीन इतिवृत्त पर दृष्टि डालने से इसकी महत्ता का सहज ही भान हो जाता है। यह उत्तर पांचाल की राजधानी रहा है । इसका प्राचीन नाम 'संखावती' था, और वह कुरु जांगल देश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। जब भगवान पार्श्वनाथ यहाँ आये और किसी उच्च शिक्षा पर ध्यानस्थ थे। उस समय कमठ का जीव संवर, देवविमान में कहीं जा रहा था। उसका विमान इकाइक समजा, उसने नीचे उतर कर देखा तो पार्श्वनाथ दिखाई पड़े। उन्हें देखते ही उसका पूर्व भव का र स्मृत हो उठा। पूर्व र स्मृत होते ही उसने क्षमाशील पारनाथ पर घोर उपसने किया इतनी अधिक वर्षा की कि पानी पारगाय की प्रीवा तक पहुंच गया, किन्तु फिर भी पार्श्वनाथ अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए। तभी धरणेन्द्र का आसन कम्पायमान हुआ और उसने अवधिज्ञान से पा नाथपरक उपसर्ग होता जानकर तत्काल धरणेन्द्र पद्मावती सहित आकर और उन्हें ऊपर उठाकर उनके सिर पर फह का छत्र तान दिया। उनसर्ग दूर होते ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। पश्चात् उस सम्बरदेव ने भी उनकी शरण में सम्यकत्व प्राप्त किया। और अन्य मत्त सो तपस्वियों ने भी जिनदीक्षा लेकर आत्म काण किया। उसी समय से यह स्थान अहिच्छत्र नाम से रुपात हुआ है। वहाँ राजा वसुपाल ने सहस्रकूट वंश्यालय का निर्माण कराया था। और पाश्र्श्वनाथ की एक सुन्दर सातिशय प्रतिमा भी निर्माण कराया था। यह दिम्बर जैनियों का तीर्थ स्थान है। यहां की खुदाई में पुरातत्व की सामग्री भी उपलध पी है। --देखो, उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र अनेकान्स वर्ष २४ किरण ६ पुगि पवित्र पावेसरी।
म जीवाज्जिन पाद(रज मे वर्न कम चुवतः ॥
२)
- सुदर्शन चरित्र
सदावर्ती राजसेवा परा॑मुषः । घ मोक्षार्थी वापसी पार्कसरो ॥
(क) पदे श्री
-नगर तालुका का शिलालेख
भ अहिले जग नागरे नगरे बरे ।।१८ पुण्यादवनिपालाख्यो राजा राज कलान्वितः । प्रान्तं राज्यं करोत्युच्य विप्रैः पञ्चशतं तः ॥ १e विप्रास्तं वेद वेदाङ्ग पारगाः कुलविताः । कृत्वा सन्ध्या वन्दनां वयं सन्ध्या च निरन्तरम् ॥२०
(राम्रा कथाकोष)