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________________ श्री सुगन्ध दशमी व्रत कथा ********************** [ ७७ ******* हे स्वामी! मेरी यह मदनावती स्त्री किस कारणसे ऐसी रूपवान और अति सुगन्धित शरीर है। तय श्री गुरुने मदनावतीके पूर्व भवांतर कहे और सुगन्धदशमीके व्रतका महात्म्य बताया तो पुरुषोत्तम और मदनावती दोनों अपने भवांतरकी कथा सुनकर संसार देहभोगों से विरक्त हो दीक्षा लेकर तपश्चरण करने लगे। इस प्रकार तपश्चरणके प्रभावसे मदनायती स्त्रीलिंग छेदकर सोलहवें स्वर्गमें देय हुई। वहां बाईस सागर सुखसे आयु पूर्ण करके अन्त समय चयकर मगध देशके वसुन्धा नगरीमें मकरकेतु राजाके यहां देवी पट्टरानीके कनककेतु नामका सुन्दर गुणवान पुत्र हुआ । पिताके दीक्षा ले जाने पर कितनेक काल राज्य करके यह भी अपने मकरध्वज पुत्रको राज्य दे दीक्षा लेकर तपश्चरण करके और देश विदेशों में विहार करके अनेक जीवोंको धर्मके मार्गमें लगाने लगे। इस प्रकार कितनेक काल कनककेतु मुनिनाथको केवलज्ञान हुआ और बहुत काल तक उपदेशरूपी अमृतकी वृष्टि करके शेष अघाति कर्मोका नाशकर परम पद मोक्षको प्राप्त हुए। इस प्रकार सुगन्ध दशमीका व्रत पालकर दुर्गन्धा भी अनुक्रमसे मोक्ष प्राप्त हुई तो भव्य जीव यदि यह व्रत पाले तो अवश्य ही उत्तमोत्तम सुखोंको पावें । सुगन्ध दशमी व्रत कियो, दुर्गन्धाने सार । सुरनरने सुख भोगमें, अनुक्रम गई भव पार ॥ MMM ^^^
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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