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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ********************************
अर्थात् चमर, छत्र, घण्टा, झारी, ध्यजा आदि दश दश ..उपकरण जिन मंदिरों में भेंट देने और दश प्रकारके श्रीफल
आदि फल दश धरके श्रायकोंको यांटे। यदि उद्यापनकी शक्ति न होवे, तो दूना व्रत करे।
उत्तम प्रत उपवास करनेसे, मध्यम काजी आहार और जघन्य एकासन करनेसे होता है।
इस प्रकार राजा प्रजा सबने व्रतकी विधि सुनकर अनुमोदना की और स्वस्थानको गये। दुर्गन्धा कन्याने मन, वचन, कायसे सम्यक्तपूर्वक व्रतको पालन किया। एक समय दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवानके कल्याणकर्क समय देव तथा इन्द्रोंका आगमन देखकर उस दुर्गन्धा कन्याने निदान किया कि मेरा जन्म स्वर्गमें होवे, सो निदानके प्रभावसे यह राजकन्या स्वर्गमें अप्सरा हुई और उसका पिता राजा मरकर दसवें स्वर्गमें देव हुआ।
यह दुर्गन्धा कन्या अप्सराके भवसे आकर मगध देशके पृथ्वीतिलक नगरमें राजा महिपालकी रानी मदनसुन्दरीके मदनायती नामकी कन्या हुई, सो अत्यन्त रूपवान और सुगंधित शरीर हुई। और कौशाम्बी नगरीके राजा अरिदमनके पुत्र पुरुषोत्तमके साथ इस मदनाथतीका व्याह हुआ। इस प्रकार वे दम्पति सुखपूर्वक कालक्षेप करने लगे।
एक समय पनमें सुगुसाचार्य नामके आचार्य संघ सहित आये सो वह राजकुमार पुरुषोत्तम अपनी स्त्री सहित यन्दनाको गया तथा और भी नगरके लोग वन्दनाको गये सो स्तुति नमस्कार आदि करनेके अनन्तर श्री गुरुके मुखसे जीयादि तत्वोंका उपदेश सुना! पश्चात् पुरुषोत्तमने कहा