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"महावीर के पांचों नामों की स्थिति के अनुसन्धान की क्रमानुवर्ती कथा हैं I बर्द्धमान, सन्मति, बीर, महावीर, अतिवीर ये पाँच उत्थान विकसित पूर्ण व्यक्तित्व के मीतस्तम्भ हैं। साधक को मुनि, उपाध्याय, आचार्य, अरिहन्त एवं सिद्ध की दशा से गुजरकर ही मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। गणमोकार मन्त्र और महावीर बिम्ब प्रतिविम्ब के रूप में है। यमोकार मन्त्र साधक के जीवन की शिखर पर से उतरती डगर है । लाधना में पहले प्रयोग, फिर विश्लेषण, फिर पुष्टि (कृति), फिर व्यवहार (लोककल्याण) और तदनन्तर सिद्धि जैनधर्म इसी भेद-विज्ञान का दर्पण हे
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भगवान महावीर को जितेन्द्रिय भी कहते हैं। स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, चक्षुरेन्द्रिय, कर्णेन्द्रिय-इन पाँचों इन्द्रियों के विषयों के भोग से पूर्ण विरक्त अर्थात् वीतरागी होना ही सिद्धपद को प्राप्त करना है। इस आधार पर भी उनके पंचनामों का अर्थ- प्रतिपादन हो सकता है। इस प्रकार नाम अर्थ के प्रतिपादन से आधुनिक महाकवियों ने भगवान महावीर के चरित्र का प्रभावी चित्रण किया है।
आकृति, वेश-भूषा, रूप-वर्णन
आकृति या वेश-भूषा रूप के आधार पर किसी चरित्र के गुणों के सम्बन्ध में कुछ कल्पना करना भ्रामक हो सकता है। लेकिन किसी नये व्यक्ति से प्रथम भेंट के समय हमारा ध्यान सबसे पहले उसकी आकृति और वेश-भूषा-रूप पर ही पड़ता है । सर्वप्रथम हम उस व्यक्ति की आकृति - वेश-भूषा रूप के आधार पर ही उसके चरित्र गुणों को आँकने का प्रयत्न करते हैं। आकृति और वेशभूषा रूप के आधार पर साहित्यकार पात्रों की मनोदशा पर होनेवाले परिवर्तनों को भी व्यक्त करते हैं। पाठकों के सामने पात्रों की आकृति और वेशभूषा रूप के चित्रण द्वारा ही साहित्यकार पात्रों का साकार रूप खड़ा कर देते हैं। सिर्फ़ साकार रूप ही प्रस्तुत करने के लिए आकृति और वेशभूषा रूप का चित्रण नहीं होता, अपितु पात्रों के गुणावगुणों का और मनोदशा के सांकेतिक चित्रण के लिए भी उपयुक्त होता है। अतः बहिरंग चित्रण पात्र के चरित्र-चित्रण में योगदान अवश्य करता है।
भगवान महावीर के चरित्र का चित्रण करते समय आलोच्य वीर चरित महाकाव्यों में आकृति - वेशभूषा एवं रूप का वर्णन इस प्रकार किया गया है(1) आकृति - आकार रंग-रूप आदि का चित्रण
(2) वेशभूषा - वस्त्र, आभूषणादि का चित्रण |
(3) चरित्र के विविध रूप -- गर्भरूप, बालरूप, किशोर रूप, युवकरूप, श्रमणरूप, अहं रूप तथा सिद्धरूप का चित्रण ।
आकृति वर्णन - भगवान महावीर जितने भीतर से सुन्दर थे, उतने ही बाहर से
1. सं. डॉ. नरेन्द्र भानावत भगवान महावीर आधुनिक सन्दर्भ में ..
1112 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर