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________________ महावीर का सम्पूर्ण जीवन सत्य और सम्यकृत्व की खोज पर समर्पित जीवन था। सम्यक दर्शन की, सम्यक ज्ञान की और सम्यक् चारित्र की तलाश अर्थात् उनके सत्यार्थ की उत्तरोत्तर खोज ने उपलब्धियाँ पाना महावीर के जीवन का लक्ष्य था । इसी तथ्य को हम महावीर के जीवन-पथ को एक सूत्र में कह सकते हैं सम्यक्-दर्शनज्ञान- चारित्राणि मोक्षमार्गः " महावीर सत्यार्थी हैं। अतः उनके पाँच नामों में सत्य को खोजने की वैज्ञानिक प्रतिक्रिया प्रतिनिधित है। जो सत्यार्थी हैं उसे बर्द्धमान बने रहने की ज़रूरत है। वर्द्धमान से तात्पर्य प्रगतिशील होना है। सत्य की पहली दिखाई देने वाली मुद्रा है - साधु अर्थात् प्रयोगधर्मी साधक होना। वर्द्धमान नाम नहीं है, वह सर्वनाम है। महावीर में सम्यक्त्व की खोज जहाँ से शुरू होती हैं वहाँ से वह 'वर्द्धमान' है बर्द्धमानता का सन्दर्भ उनकी सिद्धार्थता के आरम्भ से है। t बर्द्धमानता सन्मति को जन्म देती है। प्रगतिशीलता विशुद्ध मति को जन्म देती है | सन्मति से तात्पर्य है - विवेक युक्त ज्ञान । सन्यति गतिमान एवं प्रज्वलित होती है अनुशासन में रहने से साधक के व्रती बनकर उपाध्याय के अनुशासन में रहने से वह 'सन्मति' बन जाता है। सम्यक्त्व की खोज की यह दूसरी सीढ़ी है। प्रयोग के बाद उपलब्धियों के लिए अनुशासन की आवश्यकता है । I महावीर का तीसरा नाम है- वीर वीरत्व पुरुषार्थ का नामान्तर है। वर्द्धमान, सन्मति वीरत्व में प्रकट होती है। बीरता का मतलब है-लौकिक अड़चनों की चिन्ता न करते हुए सम्यक्त्व की खोज में अविचल रहना। महावीर में इस खोज - यात्रा में अग्रसर होने के लिए वह निर्भयता, शूरता आयी थी अर्थात् स्व-पर-विज्ञान के चिन्तन से उनकी प्रज्ञा चरम उत्कर्ष पर पहुँची । उज्जयिनी के अतिमुक्तक श्मशान में ध्यानस्थ महावीर की साधना में स्थाणुरुद्र दैत्य ने अनेक बाधाएँ उपस्थित की, लेकिन यह दैत्य हार गया और उनकी शरण में जाकर कहा - महावीर हैं आप मुझे क्षमा करें। महावीर की अप्रतिम साधना ने उसे अर्हत् की अर्हता के सोपान पर प्रतिष्ठित किया। महावीर श्मशान स्वयं गये थे, अपने समस्त विकारों के दहन के लिए। अतः महावीर का वह नाम कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । भगवान महावीर का पाँचवाँ नाम अतिवीर हैं। अतिवीरत्व की स्थिति सिद्धत्व में है। अतिवीरता से तात्पर्य है - लौकिक (बाह्य एवं आन्तरिक) वीरता की इति और अलौकिक वीरता का सद्भाव अतिवीरता शाश्वत, चिरन्तन वीरता है। यह वीरता आत्मा की अनन्त शक्ति है। वीरता की तीन श्रेणियाँ हैं- वीरता, महावीरता, अतिवीरता । वीरता याने प्रगतिशील, प्रयोगधर्मी साधु की सन्मति का सार्थ पुरुषार्थ है, महावीरता से तात्पर्य स्व-पर-भेद का उसकी सम्पूर्णता में प्रकट होना है। अतिवीरता से तात्पर्य है - बन्ध-मोक्ष के पार्धक्य को सम्पूर्ण सिद्धि का परमपुरुषार्थ है। डॉ. नेमिचन्द्र जैन लिखते हैं - भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण :: E
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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