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गर्भान्तरण के प्रसंग भी चरित्र में समाविष्ट हैं। भगवान महावीर की साधना एवं उपद्रवों की घटनाएँ परम्परागत श्वेताम्बर मान्यताओं के
अनुसार चित्रित की गयी हैं। (i) महाकवि अनूप ने 'बर्द्धमान' महाकाव्य में भगवान महावीर का चरित्र
प्रस्तुत करते हुए दिगम्बर, श्वेताम्बर तथा वैदिक सम्प्रदाय की विचारधाराओं में समन्वयवादी दृष्टि अपनायी है। श्रमण परम्परा और ब्राह्मण परम्परा के आदर्शों का समन्वय भगवान महावीर के चरित्रादर्शों एवं उपदेशों में स्थापित करके सन्तुलित दृष्टि का परिचय महाकवि अनूप ने दिया है। डॉ. छैलबिहारी गुप्त ने अपने 'तीर्थकर महाबीर' महाकाव्य में समन्वय की दृष्टि अपनाते हुए अधिकतर दिगम्बर मान्यताओं के अनुसार भगवान महावीर के चरित्र का परिचय दिया है। भगवान महावीर के गर्भकल्याणक महोत्सव के प्रसंग को टाल दिया है। महावीर के चरित्र के प्रति उनका दृष्टिकोण बुद्धिवाद का रहा है। भगवान महावीर की चिन्तनधारा का सुव्यवस्थित, सन्तुलित एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन किया है। भगवान. महावीर के जीवनवृत्त को एक नये परिवेश में देखकर उसे महाकाव्यात्मक शैली में अभिव्यक्ति दी है। रघुवीरशरण "मित्र' ने 'वीरायन' में भगवान महावीर के ऐतिहासिक चरित्र को अपने युगीन परिस्थितियों के परिवेश में परखकर उनके जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति को प्रधानता दी है। सही अर्थों में इस रचना में भगवान महावीर के चरित्र-वर्णन में आधुनिकता की दृष्टि का परिचय हमें प्राप्त होता है। समन्वयवादी दृष्टिकोण से भगवान महावीर के चरित्र को प्रस्तुत करने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई है। कुल मिलाकर भगवान महावीर के चरित्र में हमें नर से नारायण, जात्मा से परमात्मा, आत्मविकास के विविध सोपानों की प्रक्रिया की वैज्ञानिक दृष्टि मिलती हैं। सामाजिक पक्ष में उदारमतवादी, मानवतावादी, समतावादी, सर्वोदयवादी के रूप में चरित्र उभरकर आया है।
92 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर