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तृतीय अध्याय भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण
भगवान महावीर के चरित्र का समग्र चित्रण हिन्दी साहित्य की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। साम्प्रदायिक अभिनिवेश से मुक्त, ऐतिहासिक एवं साहित्यिक महावीर-चरित्र हिन्दी साहित्य की धरोहर हो सकती है। हिन्दी के आधुनिक महावीर चरित महाकाव्यों के अनुशीलन से महावीर चरित्र का सम्यक् एवं वैज्ञानिक आकलन करने का प्रयास
भगवान महावीर लोकोत्तर, आत्मज्ञ पहापुरुष थे। वे अन्तर्जगत के जगज्जेता थे। उनका व्यक्तित्व और चरित्र विश्व के उन सभी योद्धाओं, राजाओं, महाराजाओं और चक्रवर्ती सम्राटों से भिन्न है, जिन्होंने भयंकर रक्तपात कर अपनी. राजसत्ता का विस्तार किया तथा आतंकवादी साम्राज्यवाद का पोषण करते हुए भोगासक्त जीवन बिताकर मृत्यु की शरण ली। युद्ध में लाखों-करोड़ों दुर्जेय योद्धाओं को जीतने की अपेक्षा एक अपनी आत्मा को जीतना सर्वश्रेष्ठ विजय है। आत्मा द्वारा आत्मा को जीतनेवाला ही पूर्णतः सुखी हो सकता है, सच्चा विजेता वही हैं। महावीर ऐसे ही वीर योद्धा हैं।
भगवान महावीर की जीवनगाथा आत्मसंघर्ष, आत्मविलय और आत्मसुख की त्रिसूत्रीय योजना में गुंथी हुई है। इसीलिए भगवान महावीर का चरित्र भौतिक घटनाओं और सामयिक प्रसंगों का चित्रण मात्र नहीं है। उनका चरित्र अन्तःसाधना, आत्मचिन्तन एवं आत्मोत्कर्प का क्रमिक विकास है। अन्तर्मुखता उनके चरित्र का प्रधान गुण तथा अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, संयम, तप, ध्यान आदि उनकी बाह्य अभिव्यक्तियों हैं। कर्मकाण्ड का प्रदर्शन उनका स्वभाव नहीं है। डॉ. भगवानदास तिवारी के शब्दों में-“यही कारण है कि भगवान महावीर के व्यक्तित्व और चरित्र के आकलन के लिए उनके जीवन को बाह्य घटनाओं के साथ-साथ उनकी अन्तरंग वैचारिक क्रान्ति का अन्तर्दर्शन अनिवार्य हैं।...भगवान महावीर के विचारों को समझे बिना उनके व्यक्तित्व और चरित्र को आत्मसात नहीं किया जा सकता। विचार और व्यवहार, चरित्र के क्रमशः अन्तरंग और बहिरंग पक्ष हैं। इसीलिए भौतिक जीवन के उतार-चढ़ाव की अपेक्षा अन्तःसाधना में, आत्मान्वेषी प्रज्ञा को ऊर्ध्वगामी गति में,
भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण :: १