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________________ भी सहनशील होना चाहिए। अतः आत्मा की महानता का रहस्य निम्न पंक्तियों में स्पष्ट है "दयावान दानी जो होता, मानरहित मानव जो होता, क्षमाशील होने से सबका प्रिय सखा मनभावन होता ॥" (वही, पृ. 195 ) जनकल्याण करने के लिए लोक हितकारी चरित्र को दयाशील, क्षमाशील तथा विनम्र होना अनिवार्य होता हैं। ( 3 ) दीक्षा के समीप - बर्द्धमान सत्य, अहिंसा, समता, संयम का चिन्तन करते-करते मुनि दीक्षा लेने का संकल्प करते हैं। देव उस समारोह की तैयारी में लगते हैं । त्रिलोक में प्रभु के इस संकल्प से उत्साह का निर्माण हुआ। लोककल्याण के लिए वर्द्धमान घोर तपश्चर्या करने के लिए उद्यत हुए । ( 4 ) दीक्षा- वर्द्धमान मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी तिथि के सुबह रत्नजटित परिधान पहनकर धीर-वीर सेनानी जैसे शत्रु पर विजय पाने के लिए महल से वन निकले। वहाँ जंगल में सब वस्त्र और आभूषण छोड़ दिये और पाँचमुष्टि से केशलोंच किया । (5) दीक्षा के उपरान्त-दीक्षा के उपरान्त वर्द्धमान के भाई नन्दिवर्धन को अपना जीवन अधूरा लगने लगा। भाई के विरह में वे अत्यन्त दुःखी हुए। एक नंगा भूखा ब्राह्मण मुनि वर्द्धमान के पास कुछ भीख माँगता है। प्रभु ने आधा देव वस्त्र उसे दे दिया । ब्राह्मण को उस आधे वस्त्र का मूल्य एक लाख मोहर मिली। वह प्रसन्न हुआ। शेष आधा वस्त्र जंगल की झाड़ी में उलझ गया। प्रभु ने उस आधे वस्त्र को वहीं छोड़ा। उन्हें उसे छोड़ने का तनिक भी खेद नहीं हुआ। बर्द्धमान स्वेच्छा से समस्त राजवैभव का त्याग करके श्रमणसाधना के पथ पर चलते रहे । पंचम सोपान - साधना एवं उपसर्ग ( 1 ) तप साधना एवं उपसर्ग - प्रभु वर्द्धमान वन के प्रांगण में वनस्पति, पशु-पक्षियों के बीच सहज जीवन व्यतीत करते हुए आत्मध्यान करते थे। वर्द्धमान के तप का सामर्थ्य ऐसा था कि समस्त पशु-प्राणी परस्सर वैर को भूलकर निर्भयता से बैठे हुए थे। (2) उपसर्ग - तप करते समय अनेक भँवरों ने कीड़ों ने प्रभु के देह को नोचा, लेकिन वे शान्त भाव से उस उपसर्ग को सहन करते रहे। षष्ठ सोपान --- साधना का स्वरूप (1) साधना का स्वरूप आत्मगत एवं समष्टिगत-साधना से साधक के हृदय में नवशक्ति का संचार होता है। कवि का कथन है हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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