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(2) किशोर अवस्था - एक दिन बर्द्धमान ने छत पर से देखा कि नगर पथ पर एक मदोन्मत्त हाथी अनेक लोगों को अपने पैरों तले कुचलता हुआ दौड़ रहा है। वर्द्धमान झट जाकर हाथी को वश में कर लेते हैं और नगरजनों की रक्षा करते हैं। कवि वर्णन करता है
"ऐसे संकट की बेला में कैसा शौर्य दिखाया।
जान हथेली पर लेकर जनता को आन बचाया।। "
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( श्रमण मगवान महावीर - चरित्र, पृ. 86 ) महावीर के चरित्र में परोपकार जनकल्याण की भावना रही है। किशोर वर्द्धमान जंगल में मित्रों के साथ वृक्ष के ऊपर खेल खेल रहे थे। इतने में वहाँ एक विषैला सर्प विकराल रूप धारण करके दिखाई दिया। सभी बाल-मित्र भाग गये। लेकिन किशोर बर्द्धमान ने उस पर विजय पायी। वह सर्प मायावी रूप छोड़कर देव के रूप में प्रकट हुआ। उसने किशोर बर्द्धमान से क्षमा माँगी और प्रभु की वन्दना करके देवलोक में लौट गया ।
तृतीय सोपान - युवक एवं विरागी महावीर
( 1 ) तरुणावस्था - किशोर वर्द्धमान ने युवावस्था में पदार्पण किया। कवि युवावस्था का वर्णन करता हुआ कहता है
"विकसित पुलकित अंग, हृदय में साहस, हीरे-सी जगमग थी काया । नख - शिख में अनुपात, सुघरता छाबे में सिहर उठी यौवन की माया ॥ " (वही, पृ. 93 )
युवक वर्द्धमान के सौन्दर्य से सभी प्रभावित थे। अतः माता-पिता ने वर्द्धमान के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। वसन्तपुर नगरी के राजा समरवीर की बेटी यशोदा माता को बहू के रूप में पसन्द थी। वर्द्धमान के मन में विवाह करें या न करें - इस बात को लेकर द्वन्द्व चलता रहा। लेकिन माता-पिता के प्रति अत्यधिक सम्मान होने के कारण वे विवाह के पक्ष में विचार करते हैं।
(2) अन्तर्द्वन्द्व - माता-पिता की इच्छा को टालकर बर्द्धमान उन्हें दुःख पहुँचाना नहीं चाहता था। अतः उनके प्रस्ताव को स्वीकार किया। कुण्डग्राम में वर्द्धमान के विवाह की वार्ता सुनकर आनन्दमय वातावरण फैला। विवाहोत्सव बड़ी धूमधाम से हुआ। वर्द्धमान और यशोदा के प्रेमव्यवहार का चित्रण कवि ने इस प्रकार किया
"टूट गयी थी डोर वासना जीत गयी, मधुर मिलन में घड़ियाँ कितनी बीत गयीं । पंख लगाकर प्यार - गगन में विचर गया, थी अनन्त की सत्ता जैसे जीत गयी ॥ "
(वही, पृ. 105 )
86 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर