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के चरित्र का वर्णन किया है। वर्द्धपान चरित्र का वर्णन विभिन्न कथाओं में 'कल्पसूत्र'
और 'स्थानांगसूत्र' ग्रन्थों में हुआ है। ये ही प्रस्तुत चरित्र रचना के उपजीव्य ग्रन्थ हैं। प्रस्तुत महाकाव्य '352' पृष्टों का है। भगवान महावीर के सम्पूर्ण चरित्र को कवि ने नौ सोपानों में विभाजित करके चित्रित किया है। 'श्रमण भगवान महावीर-चरित्र' में महावीर-चरित्र प्रथम सोपान-गर्भ एवं जन्म-कल्याण
(1) स्वर्ग से चयन-बिहार राज्य के वैशाली नगर में महाकुण्ड नामक गाँव में ऋषभदत्त ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नो देवानन्दा एक विदुषी नारी थी। देवलोक से तीर्थंकर के जीव ने देवानन्दा के गर्भ में प्रवेश किया। यही वर्द्धमान का जीव था। तभी से धन-धान्य की समृद्धि होने लगी। ब्राह्मण कुल में तीर्थंकर का जन्म नहीं होता है। वर्द्धमान के जीव में ब्रह्मतेज के साथ क्षत्रिय भावना का अद्भुत मिश्रण था। अतः ब्राह्मण कुल को छोड़ क्षत्रिय कुल में गर्भ का परिवर्तन इन्द्र ने किया। प्रबल संस्कार से यह परिवर्तन सम्भव होता है।
(2) माता त्रिशला के गर्भ में-वैशाली के क्षत्रिय कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ रहता था। उसकी रानी त्रिशला के गर्भ में तीर्थंकर का जीब आया। रानी त्रिशला को
आषाढ़ शुक्ल षष्ठी तिथि की रात के अन्तिम प्रहर में स्वप्न दिखाई दिये। सपनों में सिंह, हाथी, बैल, लक्ष्मी, दो पुष्पमाला, चन्द्र, सूरज, ध्वज, कलश, पद्म, सिन्धु, विमान, रत्न, धूम्ररहित अग्नि, मुख में जाता हुआ हाथी आदि चौदह स्वप्न थे।
(3) सपनों का विश्लेषण-रानी त्रिशला ने राजा सिद्धार्थ को सपनों की बात कही। तब राजा ने कहा कि सभी स्वप्नों का फल यही है कि एक भव्य अलौकिक जीव तीर्थकर भगवान के रूप में तेरे गर्भ में बढ़ रहा है। इतने में इन्द्र सपरियार आकर राजा-रानी का पूजन करके गोत्सव मनाते हैं।
(4) जन्मकल्याणक-चैत्र-शुक्ल त्रयोदशी सोमवार (विधुवार) के दिन वालक वर्द्धमान का जन्म हुआ। प्रसव काल में स्वर्ग से देवों ने आकर उत्सव मनाना आरम्भ किया। अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। इन्द्र और इन्द्राणी उस नवजात बालक को लेकर सुमेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर अभिषेक करने के लिए ले जाते हैं। और शिशु को राजमहल में माता के पास लाकर छोड़ जाते हैं। अलौकिक, महामानव के गर्भजन्म-महोत्सव मनाने स्वर्ग से इन्द्रादिदेवों का आगमन होता है। यह पौराणिक दृष्टि रही है। द्वितीय सोपान-बाल एवं किशोर अवस्था
(1) बाल-लीला-शिशु बर्द्धमान के जन्मतः तीन ज्ञान थे-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान । वे भीतर से संवेदनशील थे। वर्द्धमान बाहर से क्रीडाशील थे। बाललीलाओं का चित्रण मनोहारी है।
आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: 8.5