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गौड़, आन्ध्र, केरल आदि प्रदेशों में धर्म प्रभावना की। उनकी भाषा दिव्यध्वनिमय थी, जिसे सभी उपस्थित श्रोता समझते थे और अन्त में पावानगर में अनेक सरोवरों के बीच उन्नत भूमि पर वे स्थित हो गये । यहाँ उन्होंने 6 दिन योग निरोध करके अन्तिम चौदहवाँ गुणस्थान प्राप्त किया और शेष अघाती कर्मों का क्षय करके कार्तिक वदी अमावस्या के (ब्राह्म मुहूर्त में, सूर्योदय से पहले) संमार के आवागमन से मुक्ति प्राप्त की। औदारिक आदि शरीरों का नाश किया। भगवान महावीर अरिहन्त पद से सिद्ध पद तक पहुँच गये। आत्मा को सिद्धावस्था चरमावस्था है। वही अवस्था परमात्मावस्था है। आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का वैज्ञानिक विश्लेषण भगवान महावीर के चरित्र से हमें प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
डॉ. छैलबिहारी गुप्त ने "तीर्थकर महावीर' महाकाव्य में तीर्थंकरों के चरित्र-वर्णन की प्राचीन परम्परा को अपनाते हुए भगवान महावीर के चरित्र का चित्रण किया है। प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत के महावीर विषयक प्रबन्धकाव्यों के आधार पर आधुनिक हिन्दी काव्य लिखे गये हैं। प्रस्तुत महाकाव्य में कवि ने आठ सर्गों में भगवान महावीर के जन्म से लेकर परिनिर्वाण तक की विशाल आध्यात्मिक जीवन-यात्रा का वर्णन किया है। तीर्थकर-चरित्र लिखने को प्राचीन परम्परा का निर्वाह करते हुए अपनी कल्पना एवं प्रखर प्रतिभा के द्वारा भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण सुन्दर एवं सरल शैली में चित्रित करने का प्रयास किया है।
महाकाव्य में सर्गों को शीर्षक नहीं दिये हैं। फिर भी महावीर की सम्पूर्ण जीवनी को आठ उत्थानों में प्रस्तत किया है। आठ वर्ष तक का बाल-जीवन परिचय प्रथम सर्ग में है। दूसरे सर्ग में तीस बरस तक का किशोर एवं युवा जीवन चित्रित है। तीसरे एवं चौथे सों में मुनि जीवन के तप, संयम, ध्यान आदि के द्वारा चरित्र-चित्रण किया है। पाँचवें सर्ग में केवलज्ञान एवं अर्हन्त पद की प्राप्ति से प्राप्त तेज एवं समवसरण वैभव के वर्णन द्वारा महावीर के व्यक्तित्व की चरम अवस्था पर प्रकाश डाला है। षष्ठ सर्ग में महावीर द्वारा दिये गये उपदेशों का विवरण है। सातवें सर्ग में महावीर-याणी के प्रभाव को अंकित करके आठवें सगं में निर्वाण-महोत्सव का चित्रण किया है। इसमें पूर्वभवों एवं गर्भकल्याणक के चित्रण का अभाव है।
'श्रमण भगवान महावीर-चरित्र' महाकाव्य
अभयकुमार 'योधेय' का यह अभिनव महाकाव्य ‘श्रमण भगवान महावीर' है। इसका प्रकाशन भगवान महावीर प्रकाशन संस्था, मेरठ द्वारा अगस्त, 1976 में हुआ। भगवान महावीर के चरित्र की विराटता इसमें वर्णित है।
श्वेताम्बर जैनाचार्यों-कवियों-सोमप्रभसूरि-मेस्तुगादि ने अपभ्रंश भाषा में तीर्थंकरों
84 :: हिन्दी के पहाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर