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जनवाणी 'अर्धमागधी में लोकहितार्थ प्रकट किया। भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे - ( 1 ) इन्द्रभूति (गौतम), (2) अग्निभूति, ( 3 ) वायुभूति (1) शुचिदत्त, (5) सुधर्मा, (6) मानुष्य (7) मौर्यपुत्र, ( 8 ) अंकपन, (9) अचल भ्राता ( 10 ) मेतार्य और ( 11 ) प्रभास ।
इन्हीं गणधरों ने महावीर वाणी का संकलन, विवेचन, विश्लेषण, आकलन किया। उपर्युक्त प्रसंग के विवेचन में कवि ने निम्न छन्द का प्रयोग किया है"बन गये विप्र गौतम प्रधान, जीवन सुधन्य था चतुर ज्ञान । गौतम ने पाया दिशा ज्ञान, अब द्वादशांग सम्भव महान "
(वही, पृ. 211 )
इस प्रकार केवलज्ञान प्राप्ति के 66 दिन बाद गौतम के गणधर बनते ही भगवान महावीर की दिव्यध्यान से हितोपदेश का लाभ उपस्थित प्राणीमात्र को समवसरण में प्राप्त हुआ ।
षष्ठ सर्ग में गणधर गौतम तथा भगवान महावीर के मध्य प्रश्नोत्तर का वर्णन मिलता है।
सातवाँ सर्ग - भगवान महावीर के हितोपदेश का प्रभाव
राजगृही के महाराज श्रेणिक ( बिम्बसार ) भगवान महावीर के उपदेश श्रवण के लिए विपुलाचल पर आते हैं और उनके दर्शन, वन्दना आदि करते हैं। वे तीर्थंकर महाबीर का उपदेश सुनकर उनके परम भक्त बन गये। गणधर गौतम राजा के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन करते हैं। महावीर का मर्मस्पर्शी उपदेश जब जनता ने सुना तो धर्म का सुन्दर सत्य स्वरूप उसे ज्ञात हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि पशु-यज्ञ के विरोध में एक व्यापक लहर फैल गयी। यज्ञ करानेवाले पुरोहितों के तथा यज्ञ करनेवाले यजमानों के हृदय में परिवर्तन आया। वे अहिंसा के समर्थक हो गये। इस तरह श्री वीर प्रभु की वाणी प्रारम्भ से ही अच्छी प्रभावशाली सिद्ध हुई। स्वयं राजा श्रेणिक बौद्धधर्म का त्याग कर जैनधर्म को दृढ श्रद्धा से स्वीकार करता हैं 1
आठवाँ सर्ग - भगवान महावीर का परिनिर्वाण महोत्सव
भगवान महावीर का विहार पावापुर में होता है। कंवल्यप्राप्ति के बाद भगवान महावीर लोक-कल्याणार्थ सतत बिहार करते रहे। वे जहाँ भी ठहरे, वहाँ उनका नवीन समवसरण बनता रहा ( धर्मसभामण्डप)। कई दिनों तक उनका प्रभावशाली धर्मोपदेश हुआ और धर्म की निरन्तर प्रभावना होती रही। तीथंकर महावीर ने इच्छारहित होकर भी भव्य जनों के प्रति सहज दया से प्रेरित होकर मगध, काशी, कश्मीर, वैशाली, श्रावस्ती, चम्पा, वाराणसी, कौशाम्बी, मिथिला, हस्तिनापुर, नालन्दा, साकेत, विदर्भ,
आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर चरित्र 83