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________________ "औ तीन गुप्तियों की विशाल थो सेना, अब प्रबल कर्म अरि दल से टक्कर लेना यों महानोर योद्धा महान् बलशाली, सनद्ध युद्ध को हुए बजा कर तालो।" (बही, पृ. 173) उक्त पंक्तियों में विकारों से किये गये युद्ध का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत है। उस समय आत्मा के समस्त क्रोध, मान, काम, लोभ, माया आदि कषाय समूल नष्ट हो जाते हैं। आत्मा पूर्ण शुद्ध वीलराग इच्छाविहीन हो जाती है। तदनन्तर दूसरा शुक्लध्यान (एकत्व वितक) होता है, जिससे ज्ञान-दर्शन के आवरक तथा बलहीन कारक (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय) कर्म क्षय हो जाते हैं। तब आत्मा में पूर्ण ज्ञान, पूर्ण दर्शन और पूर्ण बल का विकास हो जाता है, जिसको दूसरे शब्दों में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त सुख, अनन्त बल कहते हैं। इन गुणों के पूर्ण विकसित हो जाने से आत्मापूर्ण ज्ञाता (सर्वज्ञ), द्रष्टा बन जाता है। यह आत्मा का 'तेरहवाँ गुणस्थान' कहलाता है। मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन चार कर्मों के क्षय से केवलज्ञान (अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तबल) प्रकट हो जाता है। तेरहवें गुणस्थान के अन्त में तीसरा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति नामक शुक्लध्यान होता है। तीर्थंकर महावीर ने इन सभी प्रक्रियाओं में सफलता प्राप्त की। उनके घालि कर्म क्षय हुए। उन्होंने उसी दिन वैशाख शुक्ला दशमी को केवलज्ञान प्राप्त किया। इस उपलब्धि के लिए उन्हें बारह वर्ष, पाँच मास, पन्द्रह दिन (12 वर्ष, 5 मास, 15 दिन) तपश्चर्या करनी पड़ी। "वैशाख शुक्ल दशमी की साँझ निराली, उत्तरा हस्त नक्षत्र मध्य क्षण पाली। शुभ चन्द्र योग था मुदमद मंगलकारी, जब कर्मशक्तियाँ महावीर से हारी॥" (वही, पृ. 175) (2) समवसरण वर्णन-भगवान महावीर को कैवल्य प्राप्ति हुई। वे तीर्थकर हो गये। यह पता चलते ही स्वर्ग में आनन्द की लहर दौड़ गयी । इन्द्र ने कुबेर से कहा कि वह तत्काल समवसरण का आयोजन करे। भगवान महावीर के सम्मान में आयोजित समवसरण एक दिव्य, भव्य, उदात्त, सुहावनी संकल्पना का साकार प्रतिरूप था। कुबेर ने ऋजुकूला नदी के तट पर, विपुलाचल (पर्वत) पर समवसरण (सभा) की संरचना की। सर्वत्र गहन हरियालो छायो थी। ऋजुक्ला का निर्मल, दुग्धधवल, शीतल जल कल-कल, छल-छल करता हुआ बह रहा था। शीतल, मन्द, सुगन्धयुक्त समोर प्राणों में नयी चेतना जगा रहा था। आकाश निरभ्र और प्राकृतिक परिवेश शान्त था। ऐसे वातावरण में कुबेर ने विराट् समक्सरण का आयोजन किया। आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महायार-चरित्र :: ।।
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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