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________________ तपस्वी महावीर को उसका कुछ भान ही नहीं है। ऐसी कठोर तपश्चर्चा करते हुए महावीर देश-देशान्तर में विहार करते रहे। नगर या गांव में केवल भोजन के लिए आते थे। अपना शेष समय एकान्त स्थान, वन, पर्वत, मुफ़ा, नदो के किनारे, श्मशान, बाग़ आदि निर्जन स्थान में बिताते थे। वन के भयानक हिंसक पशु जब तीर्थंकर महावीर के निकट आते तो उन्हें देखते ही उनकी क्रूर हिंसक भावना शान्त हो जाती थी। अतः उनके निकट सिंह, हरिण, सर्प, नेवला, बिल्ली, चूहा आदि जाति-विरोधी जीव भी देष, वैर भावना छोड़कर प्रेम, शान्ति से क्रीड़ा किया करते थे। (2) उपसर्ग-उज्यायिनी के महाश्मशान में प्रतिमा योग साधना तपस्वी महावीर ने की। उनकी स्थाणु रुद्र द्वारा धैर्य परीक्षा हुई। उस परीक्षा में तपस्वी महावीर उत्तीर्ण हुए। अतः रुद्र उनकी शरण में आया और महावीर कहकर उनके नाम का जयघोष किया। यह भगवान का पाँचवाँ नाम है। (3) चन्दना प्रसंग-राजा चेटक की पुत्री चन्दना (भगवान की छोटी मौसी) को वन-क्रीड़ा में आसक्त देख किसी विद्याधर ने उसका हरण कर लिया और पत्नी के डर से महान् अटवी में छोड़ दिया। वहाँ के भील ने उसे ले जाकर वृषभदत्त सेठ को दे दी। सेठ की पत्नी सुभद्रा उसके प्रति सन्दिग्ध दृष्टि होने से चन्दना को खाने के लिए मिट्टी के सकोरे में कांजी से मिश्रित कोदों का भात दिया करती थी और क्रोधवश उसे साँकल से बाँधे हुए रखती थी। किसी दिन उस कौशाम्बी नगरी में आहार के लिए भगवान महावीर स्वामी आ गये। उन्हें देखकर चन्दना उनके सामने जाने लगी। उसी समय उसके साँकल के सब बन्धन टूट गये, उसके सिर पर केश हो गये और वस्त्र आभूषण सुन्दर हो गये। शील के माहात्म्य से मिट्टी का सकोरा स्वर्ण पात्र और कोदों के चावल स्वादिष्ट भात बन गये। उस चन्दना ने भगवान को पड़गाह कर नवधा भक्ति से आहार दान दिया। उसके यहाँ पंचाश्चर्यों की वर्षा हुई और बन्धुओं के साथ उसका समागम हो गया। पंचम सर्ग-भगवान महावीर को केवलज्ञान-प्राप्ति {1) अम्भिका ग्राम के याहर ऋजुकूला-तट पर प्रतिमार्योग हेतु दो दिन के उपवास का वर्णन हैं। बिहार करते-करते तपस्वी योगी, तीर्थकर महावीर बिहार प्रान्तीय तृम्भिका' गाँव के निकट बहने वाली 'ऋजुकूला' नदी के तट पर आये। वहाँ आकर उन्होंने शाल वृक्ष के नीचे प्रतिमायोग धारण किया। तदनन्तर समाधि में लीन हो गये। उसके बाद पूर्ण शुक्लध्यान हुआ। कर्म-क्षय के योग्य आत्म-परिणामों का प्रतिक्षण असंख्यात गुणों का रूप विकसित होना ही क्षपक-श्रेणी है। क्षपक-श्रेणो आटवें, नौवें, दसवें और बारहवें गुणस्थान में होती है। इन गुणस्थानों में चारित्र मोहनोय की शेष 21 प्रकृतियों की शक्ति का क्रमशः हास होता जाता है, पूर्ण क्षय बारहवें गुणस्थान में हो जाता है। 80 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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