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________________ पराजित नहीं कर सकता। ईप्यांवश संगमदेव का परीक्षा हेतु प्रस्थान होता है। संगमदेव भूतल पर वन में आया। वहाँ कुमार बर्द्धमान अपने बाल-सखाओं के साथ खेल रहे थे । संगमदेव के महाविषधर स्वरूप धारण करने से सभी बालक 'भय के मारे वहाँ से अपने प्राण बचाकर भाग गये; केवल ‘वर्द्धमान' ही वहाँ रह गये। वे निर्भय होकर सर्प के मस्तक पर पैर रखते हुए वृक्ष के नीचे उतर गये। सजकुमार सर्प के ऊपर चढ़कर भीड़ा करने लगे। अन्त में संगमदंय ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। कुमार के शौर्य, साहत और निर्भयता की उसने प्रशंसा की। (2) वन-क्रीड़ा-उपवन में जाकर बालक वीर अपने साथियों के साथ गेंद का खेल खेलते थे। पेड़ पर आँख-मिचौली का खेल खेलते थे। बालसखाओं में युद्ध का भी खेल खेलते थे। सभी में वीर बालक यशस्वी होता था। मुनिवेश धारण करके साथियों को उपदेश भी देते थे 1 इस प्रकार अपने सखाओं के साथ क्रीड़ाएँ करते थे। (3) जल-क्रीड़ा-एक दिन सभी सखाओं के साथ जल-क्रीड़ा करने सरोवर गये थे। वहाँ गेंद पकड़ने का भी खेल करते रहे। सरोबर में कमल को देखकर बालकों में उस कमल को तोड़ने की होड़ लगी और तैरने में वीर बालक ही प्रथम थे। (4) आमोद-प्रमोद-इस प्रकार बालक की क्रीड़ाओं को देखकर आनन्दित होकर गन्धर्व लीला-गान करने लगे, अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। राजमहल में नित्य मनोरंजन के कार्यक्रम होते रहे। (5) काव्य धर्म-चर्चा-प्रभु महावीर रसिक थे और नब रसपूर्ण काव्य की चर्चा भी अपने सखाओं से करते थे-धर्म, कर्म की चर्चा । वेद-उपनिषद् के गहन तत्त्वों पर तथा पौराणिक उपाख्यान सांख्य-चोग आदि पर बातें किया करते थे। सभी अत्यन्त भावुकता से वीर की बातों को सुना करते थे। (6) मुनिद्वय द्वारा सन्मति-नामकरण-संजय और विजय नामक दो चारण मुनियों को किसी सूक्ष्म तत्त्व के विषय में कोई सन्देह उत्पन्न हो गया। जब वे महावीर के समीप आये तो दूर से ही उनके दर्शन-मात्र से उनका सन्देह दूर हो गया। वे उनका 'सन्मति' नाम रखकर चले गये। (7) महावीर अत्यन्त साधनामय और अनासक्त जीवन लेकर उत्पन्न हुए थे। उन्होंने आठ वर्ष की आयु में अणुव्रत धारण किये। वे जन्मजात आत्मज्ञानी थे। वे अनासक्त योगी धे। पति-श्रुत-अवधिज्ञान के धारक थे। अवधिज्ञान से अपने पूर्व भवों को देखा और विचार किया कि जीवन के अमूल्य तीस वर्ष मैने परिग्रह के इस निस्सार भाव को वहन करते हुए अकारण ही गँवा दिये। (8) वैराग्योत्पत्ति--चीर सोचते हैं कि मैं अब इस भार को एक क्षण भी वहन नहीं करूंगा। आत्मकल्याण का मार्ग मुझे खोजना है और आत्मसाधना द्वारा आत्मसिद्धि का लक्ष्य प्राप्त करना है। आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र ::77
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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