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________________ (५) राज्य - भोगादिकों के प्रति विरक्तिकवि के शब्दों में " करना ही होगा गृह त्याग, धधक रही है अन्तस में आग।" ( तीर्थंकर महावीर, पृ. 57 ) इस प्रकार कहते हुए राज्य भोगादिकों के प्रति उनके मन में विरक्त्ति का भाव उत्पन्न होता है। वे तीस वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ग्रहण करते हैं। तृतीय सर्ग - वैराग्य एवं मुनिदीक्षा (1) सांसारिक भोगों के प्रति पूर्ण विरक्ति - महावीर धन-वैभव छोड़कर बैरागी बने और वन में ध्यानावस्थित हुए। वर्षा, शीत, ताप, भोग, प्यास, सुख-दुःख भूलकर ये तप में लीन रहे। सब रिश्तों से नाता तोड़कर वे आत्मसाधना के पथ पर विहार करते रहे । (2) बारह भावनाओं के चिन्तन-जिन शासन में द्वादश अनुप्रेक्षाएँ अथवा बारह भावनाओं के नाम से स्मरण किया जाता है। प्रत्येक मुमुक्षु, चाहे वह मुनि हो अथवा श्रावक, ज्ञान-ध्यान की साधना के लिए तथा वैराग्य में स्थिर रहने के लिए इनका प्रतिदिन बारम्बार चिन्तन करता है। उसी समय लोकान्तिक देव आकर उनको सम्बोधन करते हैं। अतः महावीर कुण्डपुर का राजभवन छोड़कर एकान्त वन में आत्मसाधना करने हेतु संयम व सामायिक चारित्र की दीक्षा ग्रहण करते हैं । इन्द्र दीक्षा कल्याणक का उत्सव मनाता है। (3) कुण्डपुर से बाहर तपोवन में वर्द्धमान को ले जाने के लिए चन्द्रप्रभा नामक दिव्य पालकी लायी जाती है। उस पालकी को प्रथम मनुष्य, फिर इन्द्र तदनन्तर देव अपने कन्धों पर उठाकर आकाश मार्ग से ज्ञातृखण्ड वन में ले जाते हैं । इन्द्रादि देवों से भी मनुष्य की श्रेष्ठता प्रतिपादित की जाती है। ( 4 ) माता त्रिशला का वियोग-विलाप - त्रिशला को जब वर्द्धमान के संसार से विरक्त होने का समाचार ज्ञात हुआ, तब वह पुत्र स्नेह में विह्वल हो गयी और मूर्च्छित हो गयी। देवों ने माता त्रिशला को समझाया। देवों ने समझाया कि तेरा पुत्र महान् बलवान धीर-वीर है। वह ऊँचा पद प्राप्त करने जा रहा है। अतः मोह का आवरण हटा दे। तीर्थंकर की जननी अनन्त काल तक संसार तुम्हें याद करेगा, ऐसा देवों का सम्बोधन पाकर माता त्रिशला प्रबुद्ध हुई । (5) ज्ञातृवनखण्ड में संयम धारण- वर्द्धमान ज्ञातृबनखण्ड में एक स्वच्छ शिला पर बैठे । इन्द्राणी ने रत्नचूर्ण से उस शिला पर की कलापूर्ण रचना की । तदनन्तर उन्होंने मन को शान्त रखा और संयम धारण किया । ( 6 ) दस परिग्रहों एवं चौदह अन्तरंग परिग्रहों का परित्याग - महावीर ने अपने शरीर के समस्त वस्त्राभूषण उतार दिये। अपने कृत्रिम वेश दूर कर केशों का 78 हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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