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________________ भारतीय नारी की व्यथा को भी मुखरित किया है। "कथा की व्यथा है व्यथा की कथा हैं, पुरानी कथा में नयी यह व्यथा है।" (वही, पृ. 198) यही नहीं, “चन्दना तपस्या टेर रही, ऋषि-मुनियों के स्वामी आओ। इस कालकोठरी से मुहाको, पदरज से मुक्त करा जाओ।" (वही, पृ. 208) नवम सर्ग-विरक्ति निर्वेद का अर्थ है-वह सुख जिसके अन्त में दुःख नहीं। निर्वेद स्थायी भाव है, और इसका रस हैं-शान्त अर्थात् भक्तिभाव। युवा महावीर बारह अनुप्रेक्षा-भावनाओं का चिन्तन करता है। देह की नश्वरता, संसार की क्षणभंगुरता, अकेलेपन की भावना को व्यक्त करके विवाह से विरक्त होता है। माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ विवाह की उपयुक्तता पर अनेक तर्क प्रस्तुत करते हैं, लेकिन युवक महावीर जीवन की सार्थकता के लिए, आत्मोद्धार के लिए तथा जनता के उद्धार के लिए विवाह की असारता को बताते हैं। धन, दौलत, पंचेन्द्रियों के विषयोपभोग, राज्य-सत्ता, रूप-सौन्दर्य के भोग से आत्मा की शक्ति घटती है और उसमें मनुष्य की शक्ति का विकास नहीं होता है। वर्द्धमान माता-पिता के विवाह प्रस्ताव का इनकार करते हुए कहते हैं "बन्धन मुझको स्वीकार नहीं, केवलज्ञान चाहता हूँ।" (वही, पृ. 211) तथा"काम को जीत लूँ, ज्ञान की आग से, माँ! अलग मैं रहूँ रूप के वाग से। ज्ञान की आग हूँ, ब्रह्मचारी रहूँ, तप करूँ विन्दु से सिन्धु बन कर बहूँ।" (वही, पृ. 231) और अन्त में दृढ़ संकल्प करके मुनिदीक्षा ग्रहण करने वन में जाते हैं। दशम सर्ग-वन-पथ वन-पथ इस सर्ग में कलिंगकन्या यशोदा के भक्ति-रूप का वर्णन मिलता है। राजकुमार वीर ने मुकुट, कटक आदि राजसुखों का त्याग करके, भौतिकता का परित्याग करके बन में प्रस्थान किया। 'कलिंग' कन्या की भाव-भक्ति, तपस्या, 'राजगृह'-चित्रण, मूर्त वन, प्रकृति, प्रतीक, मुखर प्रकृति आदि का भी सुन्दर चित्रण हुआ है। वीर के माता-पिता और सम्बन्धियों ने बिदा लो और भगवान महावीर एकाकी रहकर वन में तपश्चर्या करने लगे। 72 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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