SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश सर्ग-दिव्य-दर्शन प्रस्तुत सर्ग में अनेक तथ्यों एवं प्रसंगों को चित्रित करते हुए भगवान महावीर की कठोर साधना की उपलब्धि के रूप में दिव्य-दर्शन, केवलज्ञान की प्राप्ति का विवेचन किया है। अनेक प्रसंगों के माध्यम से भगवान महावीर को चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। दीर्य साधना के फलस्वरूप वर्द्धमान को दिव्य-दर्शन की (केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। "प्राप्त हुए कैवल्य को, प्राप्त किया कैवल्य । तीर्थंकर भगवान ने, लिया दिया कैवल्य ।” (वही, पृ. 292) द्वादश सर्ग-ज्ञानवाणी इस सर्ग में भगवान महावीर द्वारा दिये गये उपदेशों का वर्णन है। इन्द्रादि देव हर्ष से समवसरण की रचना करते हैं। तीर्थकर ने मौन धारण किया है। इन्द्रोपाय द्वारा मौन मुखरित हुआ। भगवान महावीर ने प्राणी मात्र को ज्ञान-दान दिया। भगवान ने उपदेश देने के लिए तीस साल तक अनेक स्थानों पर बिहार किया। भगवान महावीर ने समस्त मानव मात्र के लिए हितोपकारी उपदेश दिये। पाँच व्रतों का पालन, चार कषायों का दमन, मानवतायुक्त सदाचार के पालन, ज्ञान की साधना, चारित्र-पालन की महिमा का उपदेश दिया। महावीर की वाणी में वर्ण-प्रथा के विरोध, ऊँच-नीच के भेद-भाव के विरोध, साम्प्रदायिकता के विरोध, नारी-दासता का विरोध का प्रखर स्वर गूंजता रहा। स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, अहिंसा तथा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, चे सिद्धान्त प्रमुख हैं। त्रयोदश सर्ग-उद्धार - इस सर्ग में कारागार से चन्दना के उद्धार का वर्णन मिलता है। दासी चन्दना से आहार स्वीकार करके महावीर ने उसे अपनी शिष्या बनाकर उसका उद्धार किया। "वरदान दिया तीर्थकर ने, धूमिल शशि का उद्धार हुआ। आहार लिया तीर्थकर ने, शुचि धारा का सत्कार हुआ||" (वही, पृ. 319) चतुर्दश सर्ग-अनन्त __इस सर्ग में यह प्रतिपादित किया गया है कि भगवान महावीर की वाणी कण-कण में व्याप्त हो गयी। भगवान महावीर में अनन्त रूप, अनन्त ज्योति, रत्नत्रय का पूर्ण रूप चित्रित है। मोक्ष-सौरभ का वर्णन अनुपम है। अन्त में महावीर के निर्वाण की महिमा का चित्रण है। आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: 73
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy