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________________ "पूजते हैं नद नाले पर्वत, रवि, शशि, पत्थर के ढेर यहाँ।।" __ (वही, पृ. 266) युवक बर्द्धमान ने तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का निरीक्षण किया था और उन्हें इस बात का खेद होता था कि समाज में नारी को मात्र पुरुष की भोग्य सामग्री समझा जाता था। वे नारी-मुक्ति के समर्थक थे। कवि ने कहा है "सर्वत्र मान है नर का ही, पाती न समादर नारी है। औ मात्र भोग सामग्री ही, समझी जाती बेचारी है।" (वही, पृ. 266) युवा महावीर के विचारों में नारी उद्धार की भावना युवावस्था से ही रही। वे किसी को दुःखी देखना नहीं चाहते थे। ग्यारहवाँ से तेरहवाँ सर्ग-भगवान महावीर का विरागी रूप दसवें से तेरहवें सर्ग के अन्त तक चार सर्गों में यौवन में उत्पन्न वैराग्य भावनाओं का विवेचन है। त्रिशला के द्वारा प्रस्तावित विवाह की योजना से प्रभु वर्तमान नम्रतापूर्वक इनकार करते हैं। ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके मुनि दीक्षा लेने के अपने दृढ़ संकल्प को घोषित करते हैं। प्रभु कहते हैं-- "उद्देश्य पूर्ण वह करना है, जो लेकर जग में आया हूँ। जो धर्म प्रचारण करने को, यह तीर्थकर पद पाया हूँ।" (वही, पृ. 285) पिता सिद्धार्थ राज्याभिषेक के प्रस्ताव को बर्द्धमान के सामने रखते हैं, लेकिन बीर इस प्रस्ताव को भी अस्वीकृत करते हैं। उनकी विरक्ति दिनोंदिन दृढ़ बनती जा रही है। प्रभु वर्द्धमान को जन्मतः अवधिज्ञान था। उन्हें अपने पूर्वभवों का स्मरण होता है। महावीर के जीव ने मरीचि के भव में मुनिदीक्षा ग्रहण की थी, लेकिन उस साधना पथ पर भ्रष्ट होने के कारण अब तक अनेक भवों में तिर्यच, नारकी, स्वर्ग, मनुष्य गतियों में दुःख भोगने पड़े। ___ अतः इस नर जन्म में मुनि दीक्षा धारण करने के लिए मानसिक दृढ़ता बने, इसलिए बारह अनुप्रेक्षाओं का सदैव चिन्तन करते रहते हैं। माता-पिता पुनः-पुनः उसे गृहस्थ धर्म एवं राज्यशासन का नेतृत्व करने के लिए मनाते रहते हैं, फिर भी प्रभु अपने निश्चय में दृढ़ रहते हैं। अन्ततः मुनिदीक्षा ग्रहण करते हैं। चौदहवाँ से सत्रहवाँ सर्ग-भगवान महावीर का तपस्वी रूप चौदहवें सर्ग में प्रथम चातुर्मास में ध्यान, धारणा की साधना करते समय अनेक बाधाओं, उपसर्गों पर प्रभु ने निडरता के साथ विजय पायी। पन्द्रहवें सर्ग में आठ 66 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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