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________________ चातुर्मासों की मुनिसाधना की प्रशंसा कवि ने की हैं। प्रभु को आत्मसाधना से विचलित करने के लिए असुर, दैत्य, पिशाच आदि दुष्ट प्रवृत्तियों द्वारा कई प्रकार के उपद्रव-प्रसंग निमाण किये गये। स्वर्ग की अप्सराओं ने भी उनको तपश्चर्या को भंग करने का प्रयास किया। स्वर्ग के देवताओं ने भी मायावी रूप धारण करके महावीर की साधना की परीक्षा ली। भगवान महावीर ने सभी परीषहों, उपसर्गों पर विजय प्राप्त की। अठारहवाँ से तेईसवाँ सर्ग-भगवान महावीर का केवली रूप तथा निर्वाण रूप सत्रहवें सर्ग में यह प्रतिपादित किया गया है कि साधक की दशा में प्रभु की दृष्टि समाज की विषमता को दूर करने की रही है। नारी को पुरुष की दासता से मुक्त करने के प्रयत्न किये। दासी चन्दना का उद्धार करके अपनी प्रमुख शिष्या बनाया। वर्ण एवं आश्रम-व्यवस्था का विरोध करके समतावाद का प्रतिपादन किया। बारह वर्ष साधना करने के पश्चात् उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इन्द्रादि देवों ने महोत्सव मना के समवसरण को सभा का आयोजन प्रभु उपदेश सुनने के लिए किया। भगवान महावीर ने अपनी दिव्यध्यनि द्वारा समस्त प्राणीमात्र के कल्याण के हेतु उपदेश दिये । उपदेश के विषय थे--जीव-तत्त्व निरूपण, रत्नत्रय की महिमा, धर्म के लक्षण, सर्वोदय एवं मोक्ष-पार्ग। भगवान महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर अनेक राजाओं ने, रानियों ने, श्रावक-श्राविकाओं ने मुनिदीक्षा ग्रहण की। तीस साल तक बिहार करते हुए उन्होंने आत्मकल्याण का हितोपदेश दिया। उम्र के 72वें साल में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ अर्थात सिद्ध परमात्मा बने, निर्वाण-महोत्सब मनाया गया। उनके निर्वाण के पश्चात् केवलियों ने धर्म-प्रचार करके वीरवाणी का ग्रन्थीकरण आचार्यों ने 'पखण्डागम' के रूप में किया। निष्कर्ष प्रस्तुत काव्य ग्रन्थ 'परमज्योति महावीर' में कवि ने भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण महावीर के जन्म, जीवन और शिक्षाओं के गुणानुवाद से किया है। भगवान महावीर के उपदेशामृत को काव्य की सलिल धारा से प्रवाहित किया है। कवि ने श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर पौराणिक, आख्यानों के आधारों पर भगवान महावीर के चरित्र का चित्रण किया है। महाकवि की दृष्टि में भगवान महावीर के विराट व्यक्तित्व के अनेकान्त रूप हैं। भक्ति भावना से ओत-प्रोत होकर आराध्य भगवान महावीर के चरित्र की विशेषताओं की महिमा गायी है। महावीर के ऐतिहासिक और मानवीय व्यक्तित्व का अंकन चरित्र-चित्रण में नहीं है। प्रस्तुत महाकाव्य में दिगम्बर मान्यताओं के अनुसार केवलज्ञान प्राप्ति के लिए महावीर की कठोर तपश्चयां, असीम देह-दमन, महाव्रत, उपवास, संयम, ध्यान, तप आदि का भक्ति भाव से चरित्र-चित्रण हुआ है। भगवान महावीर के चरित्र का विकास आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: 17
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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