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________________ साथ एक वृक्ष पर चढ़कर आमली क्रीड़ा कर रहे थे। सर्प को देखकर सभी साथी भाग गये, किन्तु बालक वर्द्धमान ने उस पर चढ़कर निर्भय होकर क्रीड़ा की। इस शौर्य पर संगमदेव ने बालक की स्तुति की और उसका नाम 'महावीर' रखा। इस प्रसंग का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि "तुम 'वीर' नहीं हो 'महावीर' मैं यह ही नाम रखता हूँ। जो भूल हुई वह क्षमा करें, अब निज निवास को जाता हूँ ।" (वही, पृ. 250 ) इस प्रकार संगमदेव बालक वर्द्धमान से क्षमा माँगकर स्वर्ग लौट जाता है। यह वार्ता नगर में फैल गयी तो समस्त जनों ने बालक का कौतुक किया। बालक के विविध नामों में यही 'महावीर' नाम जगविख्यात हुआ। क्योंकि जनता को यह नाम अधिक प्रिय लगा | बालक बर्द्धमान की वीरता को प्रकट करनेवाला एक और प्रसंग हाथी का है। नगर में हाथी मतवाला होकर घूम रहा था। अनेक जनों को उसने ध्वस्त किया । उसे काबू में रखने के लिए सभी असफल रहे, लेकिन बालक वर्द्धमान उस हाथी को शान्त करने में सफल रहा। कवि इस प्रसंग का चित्रण करता हुआ कहता है "उस दिन से ही 'अतिवीर' नाम भी उनके लिए प्रयुक्त हुआ । जो उनके अति वीरत्व हेतु, अतिशय ही तो उपयुक्त हुआ ।” (वही, पृ. 256 ) बालक वर्द्धमान को अद्वितीय ज्ञान था। आगम, पुराणों का वे निर्दोष विवेचन करते थे। जो उनके गुरु बनने आते थे वही चेला बन जाते थे। दसवाँ सर्ग- भगवान महावीर का युवक रूप बालक बर्द्धमान ने युवावस्था में पदार्पण किया। उनकी सुन्दरता के बारे में कवि ने कहा “अब तो उनकी सुन्दरता की, दिखती न कहीं भी समता थी । उनकी सुषमा में मन्मथ का भी मद हरने की क्षमता थी । " (वही, पृ. 259 ) तात्पर्य बर्द्धमान के देह की सुन्दरता अद्वितीय थी। कामदेव के घमण्ड को चूर करने की उसमें क्षमता थी। फिर भी, वर्द्धमान का मन शैशव सदृशय सरल था। बालक वर्द्धमान के सभी सखाओं ने विवाह किया। लेकिन बर्द्धमान के मन में विवाह करने की इच्छा नहीं हुई। और वे सतत अन्तर्मुख होकर शुद्धात्म का एकान्त में चिन्तन करते थे। ऊँच-नीच के भेद-भाव, वर्ण-व्यवस्था की कट्टरता, क्षुद्रों पर होने वाले अत्याचार आदि को देखकर महावीर का मन द्रवित हो जाता था। समाज में इतना अज्ञान फैला हुआ था कि देवी- देवों तक के स्वरूप को लोग ग़लत ढंग से समझते थे। जैसे आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर चरित्र :: 66
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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