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सब तरह का शृंगार किया। इस प्रकार जन्म कल्याणक बड़े धूम-धाम से मनाया गया। आठवाँ सर्ग - - भगवान महावीर का शिशुरूप
सर्ग के आरम्भ में बालक की महिमा गाते हुए उनके पूर्व भवों का वर्णन देवेन्द्र ने किया है। पूर्व भव में यह बालक 'पुरुरवा भील' था और उसने मुनि के पास मांस न खाने का व्रत ग्रहण किया था, जिसके फलस्वरूप वह स्वर्ग में सौधर्म इन्द्र हुआ । यहाँ सुख भोगकर भरत के पुत्र 'मरीचि' के रूप में पैदा हुआ। इस प्रकार '88 ' भवों का विस्तार से कथन किया। अन्त में तीर्थंकर रूप में त्रिशला के गर्भ में उस जीव का अवतार हुआ।
पूर्व भवों का वृत्तान्त प्रस्तुत करने का उद्देश्य यह रहा है कि तीर्थंकर के रूप में जन्म पाने के लिए बालक के जीव को पूर्वभवों में किस प्रकार तपश्चर्या करनी पड़ी है, इस तथ्य को सूचित करना है। जन्माभिषेक के बाद स्वर्ग के इन्द्र-इन्द्राणी और देवताओं ने नृत्य किया और अपना आनन्द तथा भक्तिभाव प्रदर्शित किया। बालक के जन्म पर बधाई देने के लिए समस्त नगर निवासी महल में आने लगे और प्रभु की सुन्दरता को देखकर विस्मित हुए |
बालक वर्द्धमान के चरित्र की विशेषता यह है कि वे बिना गुरु के सिखाये सब नैपुण्य प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं रही। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गयी वैसे-वैसे उनका अनुभव भी सहज रूप से बढ़ता गया। उनका आचरण भी अहिंसामय तथा संयमपूर्वक रहा। कवि कहता है
"लगता था, धर्म स्वयं उनके, मन, वचन, कर्म पर बसता है। और जन्म काल से जीवन संगिनी बनी समरसता है ।। " (वही, पृ. 210)
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अर्थात् जन्म से ही वे धार्मिक वृत्ति के रहे हैं। बालक की दयालुता, सत् अभिरुचि देखकर सब विस्मित होते थे और उनके दर्शन करके वे विशुद्ध हो जाते थे। बालक वर्द्धमान के चरित्र की विशेषता यह रही है कि उनके समक्ष जो भी आते हैं उनका संशय दूर होता था और उन्हें सत्य का ज्ञान होता था। एक प्रसंग पर संजय और विजय दो चारण मुनियों के पुनर्जन्म को लेकर सम्भ्रम था। जब उन्हें बालक वर्द्धमान के दर्शन हुए तब उनका संशय आप ही आप दूर हुआ। और उसी क्षण बालक को 'सन्मति' के नाम से सम्बोधित किया 1
बालक के पुण्यमय 'व्यक्तित्व को देखकर माता-पिता आनन्दित हुए और उमर के आठवें वर्ष में ही बालक 'वीर' की उपाधि को भी प्राप्त करता है ।
नवम सर्ग - भगवान महावीर एक किशोररूप
एक बार संगम नामक देव वर्द्धमान की वीरता की परीक्षा लेने के उद्देश्य से सर्प का रूप धारण कर उनके पास आया। उस समय बालक वर्द्धमान अपने साथियों के
64 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर