________________
सम्पूर्ण लोकालोकान्तर्गत भूत-भविष्य, स्थूल-तूक्ष्म, मूर्त-अमूर्त पदार्थ उनके ज्ञान में आलोकित हो गये ।
महावीर का विहार चम्पापुर की ओर हो रहा था। रास्ते में उन्हें एक चन्दना नाम की दासी हाथ में थाली लेकर उनके आहार के लिए प्रतीक्षा कर रही थी। सती चन्दना की कामुक यक्ष जबरदस्ती से उठा ले गया था। बीच में भय से उसने उसे जंगल में छोड़ दिया। एक भील उसे व्यापारी के यहाँ बेच देता है। व्यापारी की पत्नी यावश उसका सर मुंडवाती है, पैरों में श्रृंखला डालती है। सती चन्दना यह परीषह सहन करती रही और जिनेन्द्र की उपासना करते-करते महावीर के द्वारा सम्मानित हुई, वह बन्धनहीन हो गयी। इस प्रकार अनेक दुःखी लोग, किसान, कहार, चमार आदि अपने-अपने प्रश्न लेकर महावीर के पास पहुँचते और समाधान पाते।
सोलहवाँ सर्ग - केवलज्ञान-प्राप्ति
भगवान महावीर के जृम्भिका प्रवेश के वर्णन के साथ ही उनके केवलज्ञान, प्रभाव का चित्रण किया है। धार्मिक, आध्यात्मिक चिन्तन को कवि ने समर्थ शब्दावली में पद्यबद्ध किया है।
सतरहवाँ सर्ग - निर्वाणमहोत्सव
पावापुर में एक बृहद् यज्ञ चल रहा था । सोमिलाचार्य नामक एक विद्वान् ब्राह्मण उसके यजमान थे। यज्ञ में देश-देशान्तर के बड़े-बड़े ब्राह्मण आये थे। उसी समय महावीर को केवलज्ञान की उपलब्धि हुई थी। उस ब्राह्मण सभा का एक प्रमुख इन्द्रभूति गौतम तत्त्वसम्बन्धी जिज्ञासा लेकर भगवान महावीर के समवसरण में जाता है । वहाँ पहुँचते ही उसे लोक- अलोक, जीव-अजीव पुण्य-पाप, आस्रव-संबर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष आदि तत्त्वों का अस्तित्व समझ में आता है। नरक में जीव क्यों जाता है ? तिर्यंच प्राणियों के कष्ट कौन से हैं? इन प्रश्नों का भी समाधान हो जाता है। देवगति में पुण्य के समाप्त होते ही संसार की नाना योनियों में भ्रमण करना पड़ता है। अतः स्वर्ग पाना मनुष्य का अन्तिम ध्येय नहीं है। भगवान ने मनुष्य जन्म को अधिक महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ बताया है। क्योंकि इसी गति में मनुष्य पुरुषार्थ कर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिए पाँच अणुव्रतों, महाव्रतों, सातशील तथा सम्यक् धर्म का पालन करना चाहिए। इस उपदेश से प्रभावित होकर उस यज्ञ में आमन्त्रित ग्यारह प्रधान ब्राह्मणों ने भगवान से दीक्षा ग्रहण की। और समस्त ब्राह्मणों का यह विश्वास हो गया कि महावीर का कथन ही सच्चे अर्थों में वेद है । अन्ततः 4411 ब्राह्मणों ने भगवान के श्रमण धर्म को स्वीकार किया । तदनन्तर तीस वर्ष तक भगवान महावीर ने विहार किया तथा निकटवर्ती प्रदेशों में घूम-घूमकर दिव्यध्वनि रूप उपदेश दिया। अनेक राजाओं तथा विद्वानों को दीक्षा दी। जीवन के
54 :: हिन्दी के महाकायों में चित्रित भगवान महावीर