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________________ का निश्चय स्थगित कर दिया था। और तीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना ध्यान दीन-दुखियों के उद्धार की जोर दे दिया और प्रतिदिन दान दे-देकर अपनी सारी सम्पत्ति समर्पित की। धन-धान्य, राज्य परिवार आदि से अपना चित्त हटाकर राज्य वैभव का सम्पूर्ण त्याग किया। मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी के दिन चौथे प्रहर में चन्द्रप्रभा नामक पालकी में सवार होकर राजभवन से ज्ञातृखण्ड नामक उद्यान में पहुँचे और वहाँ अशोक वृक्ष के नीचे वस्त्राभूषण छोड़कर पंचमुष्टिक केशलोच के अनन्तर अपने भावी जीवन का दिग्दर्शन कराने वाली यह प्रतिज्ञा की "मैं समभाव को स्वीकार करता हूँ, और सर्व सावद्य योग का परित्याग करता हूँ। आज से बावज्जीवन कायिक, वाचिक तथा मानसिक सावद्य योगमय आचरण न तो स्वयं करूँगा और न करनेवाले का अनुमोदन करूँगा।" (वर्द्धमान, प्रस्तावना, पृ. 29 ) इस प्रकार दीक्षा समारोह बड़े ठाठ से सम्पन्न हुआ। उक्त प्रतिज्ञा करते ही महावीर को 'मन:पर्यय' नामक ज्ञान प्राप्त हुआ। पन्द्रहवाँ सर्ग - तपश्चर्या महावीर के तपस्वी जीवन का सविस्तार वर्णन है। दीक्षा लेकर महावीर ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की। तपस्वी जीवन में महावीर को पूर्वभव का ज्ञान होता है। तपस्या काल में महावीर को नाना प्रकार के दुःख, कठिन विपत्तियों तथा विपदाओं का सामना करना पड़ा। सर्प, अग्नि, जल आदि के भयों को धैर्यपूर्वक सहन करना पड़ा । राजदण्ड से भी वे न बच सके। चोर समझकर राजकर्मचारियों ने कई बार उन्हें दण्डित किया, परन्तु उन सब कष्टों को भगवान महावीर धैर्य के साथ सहते रहे। वे किसी भी अवांछित जगह नहीं ठहरते थे और भिक्षा के लिए किसी गृहस्थ से याचना भी नहीं करते थे। नित्य ध्यान में लीन रहकर मौन व्रत का पालन करते थे। दिन में केवल एक बार भोजन हाथ में लेकर करते थे। एक प्रसंग में गोशालक नाम का एक साधु उनसे मिलने आ गया। वह साघु धूर्त था और कुछ दिनों के बाद भाग गया। इस प्रकार महावीर तपश्चर्या से अपने पूर्व कृत कर्मों का क्षय करने लगे। उपसर्ग तथा परीषहों को सहते हुए विविध ध्यान तप आदि का निरन्तर अभ्यास करते रहे। बारह वर्ष तपश्चर्या के बाद उनके अन्तःकरण के क्रोध, मान, माया, लोभ आदि का अभाव हो गया और उनमें क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच आदि आत्मिक गुणों का विकास हुआ। इस प्रकार उनका जीवन लोकोत्तर एवं निर्मल हो गया। एक दिन जम्भीय नामक गाँव के समीप ऋजुबालिका नदी के तट पर देवालय के समीप शाल वृक्ष के नीचे ध्यानावस्थित हो गये। शीघ्र ही शुक्लध्यान के द्वारा उन्होंने चार घातिया कर्मों का क्षय किया। उसी समय वैशाख शुक्ल दशमी के चौथे प्रहर में महाबीर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। अब महावीर सर्वज्ञ और वीतरागी हो गये । आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर चरित्र : 53
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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