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________________ बारहवाँ सर्ग-विवाह-प्रस्ताव 24 वर्ष की आयु में कुमार की विवाह-चर्चा माँ-बाप प्रारम्भ करते हैं। दिगम्बर सम्प्रदाय भगवान महावीर को अविवाहित मानते हैं, परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय उनको विवाहित मानते हैं। कुछ भी हो, विवाह होने तथा न होने से पहावीर की वैयक्तिक महत्ता पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रस्तुत महाकाव्य साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया है। अतः कवि अनूप ने यहाँ अपनी सपन्धय दृष्टि का परिचय दिया है। कवि ने महावीर का विवाह यशोदा के साध और प्रियदर्शना को प्राप्ति सपनों में दिखलायी और जागने पर महावीर यह संकल्प करते हैं "विवाह हो? दिव्य विवाह क्यों न हो?, घरात हो? देव समाज क्यों न हो? बने नहीं पाणिगृहीत मुक्ति क्यों?, न देव ही श्रीवर मण्डलेश क्यों?" (वही, पृ. 368) इस प्रकार कवि ने मुक्ति रूपी स्त्री का महावीर को पति मानकर भगवान महावीर की प्रशंसा की हैं। तेरहवौं सर्ग-अनुप्रेक्षाओं का चिनान बारह प्रकार की भावनाओं की बार-बार भावना होने का नाम द्वादश अनुप्रेक्षा है। इन वैराग्यदायिनी द्वादश (बारह) अनुप्रेक्षाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनमें ऐसा चिन्तन किया जाता है कि जीव अकेला जन्म लेता है और इसका मरण भी एकाकी होता है। इस लोक में राग-द्वेष अनित्य है और राग-द्वेष में संसार क्षणभंगुर है। इस अनित्य विश्व में केवल निज शुद्धात्मा शरण है। आत्मा के शुद्ध स्वभाव के आश्रय से ही आत्मा की उपाधिजन्य अशुद्धता का अभाव हो सकता है। अपने शुद्ध स्वभाव में ठहरकर हम आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आत्म-कल्याण होता है और जो लोक में दुर्लभ है। महावीर के हृदय में जन-जन की तात्कालिक स्थिति को देखकर जो विचार उत्पन्न हुए हैं, ये बड़े ही मार्मिक एवं हृदयद्रावक हैं। इस प्रकार अनेक दृश्यों का चित्रण करके कवि ने बड़ा ही कारुणिक, मर्मस्पर्शी एवं उद्बोधक वर्णन किया है। चौदहवाँ सर्ग-दीक्षासमारोह कवि ने काल-महिमा का चित्रण किया है। पहावीर की चिन्तन-वैराग्य भावना को व्यक्त किया है। जगत् की विकट परिस्थितियों को देखकर एक दिन महावीर मरी जवानी में घर-बार छोड़कर, वन में जाकर प्रवजित हो जाते हैं। महावीर के अट्ठाईसवें वर्ष में उनके माता-पिता का देहान्त हो चुका था। अतः संसार से विरक्ति होनी स्वाभाविक थी, परन्तु आप्तजनों के अनुनय करने पर उन्होंने दो वर्ष के लिए गृहत्याग 52 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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