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________________ जाषाढ़ की वषां ऋतु का सुन्दर चित्रण किया है। जन्म के पूर्व छः मास पहले से ही उनके भवन पर रत्नों की वर्षा होने लगी। राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला देवी के प्रेमालाप का तथा उनकी क्रीडा का सरस वर्णन किया है। तीसरा सर्ग - षोडशस्वप्न मध्यरात्रि के समय का प्रकृति-चित्रण किया है। महारानी त्रिशला देवी को दिखे सोलह स्वप्न और उनके फल का बहुत ही सुन्दर वर्णन प्रस्तुत है। इन स्वप्न-दर्शन का फल स्वप्नज्ञों ने यह बतलाया कि यथासमय त्रिशला देवी के गर्भ से महानू चक्रवर्ती अथवा तोर्थंकर का जन्म होगा। जब से भगवान महावीर महारानी त्रिशला के गर्भ में अवतीर्ण हुए, तभी से उनके पिता की राज्यसत्ता बढ़ने लगी, उनका भण्डार धन-धान्य से परिपूर्ण होने लगा । चौथा सर्ग - स्वप्न फलकथन नव प्रभात, उषा सम्बोधन, त्रिशला का कौतुक वर्णन, राज्य सभा में स्वप्न कथन तथा उसका फलादेश आदि का विस्तृत वर्णन है। सिद्धार्थ के अन्तःपुर में आनन्दोत्सव मनाने का चित्रण है । पाँचवाँ सर्ग - सिद्धार्थ का प्रेमवार्तालाप इसके प्रारम्भ में शरद् ऋतु का वर्णन बहुत ही मनोहर ढंग से किया है। सिद्धार्थ का अन्तःपुर में प्रवेश और राज दम्पती के प्रेमालाप का चित्रण है। छठा सर्ग - त्रिशला की दिनचर्या भगवान महावीर के गर्भ में आने पर किस प्रकार कुमारिका देवियाँ उनकी माता की सेवा-शुश्रूषा करती हैं, और कैसे-कैसे प्रश्न पूछकर उनका मनोरंजन करती हैं और • अपने ज्ञान का संवर्धन करती हैं, यह बात बड़ी अच्छी तरह से प्रकट की गयी है। त्रिशला देवी की गर्भकालीन दशा के वर्णन के साथ ही कवि ने हेमन्त ऋतु का सुन्दर वर्णन किया हैं। गर्भावस्था में त्रिशला की दिनचर्या का विस्तार से वर्णन किया है। सातवाँ सर्ग - गर्भमहोत्सव वसन्तऋतु का ऐसा सुन्दर वर्णन किया है कि जिसमें उसके ऋतुराज होने का कोई सन्देह नहीं होता । "वसन्त दूती मधु-गायिनी पिकी, उपस्थिता मंजु रसाल-डाल पै अमन्द वाणी यह बोलने लगी, वसन्त आया, ऋतुराज आ गया।” ( वर्द्धमान, पृ. 201 ) आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर चरित्र : 49
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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