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का सांगोपांग वर्णन, बिहार, निर्वाणतिथि और साघ में रहनेवाले मुनियों की संख्या आदि प्रमुख स्तम्भों का विधिवत् संग्रह है।
इसो संग्रह के आधार पर शनाकापुरुषों के चरित्र विकसित हुए हैं। जिनसेन ने अपने 'महापुराण' का आधार परमेष्ठीकवि कृत बागयं संग्रह' पुगण को बतलाया है। पद्मपुराण के कर्ता रविषेण और 'हरिवंश पुराण' के का जिनसेन ने भी तीर्थकर आदि शलाका पुरुषों के विषय में जो ज्ञातव्य बृन संकलित किये हैं वे 'तिलोयपण्णत्ति' पर आधारित हैं।
वृत्तवर्णन के रूप में वर्द्धमान चरित के कथानक का आधार गुणभद्र का 'उत्तरपुराण’ जान पड़ता है, क्योंकि उत्तर पुराण के 74वें पर्व में वर्द्धमान भगवान की जो कथा विस्तार सं दी गयी है, उसका तक्षिप्त रूप वर्तमान-चरित काव्यों में उपलब्ध होता है। इतना अवश्य है कि कवियों ने उस पौराणिक कथानक को महाकाव्य का रूप दिया है। 'वर्द्धमान' में महावीर-चरित्र
वर्द्धमान के सम्पूर्ण चरित्र को महाकवि अनूप ने सत्रह सर्गों में प्रस्तुत किया है। भगवान महावीर के ऐतिहासिक चरित्र को पौराणिक शैली में छन्दोबद्ध करके कवि ने उसे महाकाव्य के रूप में चित्रित किया है।
प्रथम सर्ग-भगवान महावीर का गर्भस्थ रूप
भारत महिमा, विदेह-देश-प्रशंसा, क्षत्रिय-कण्डपर आदि स्थानों का विस्तार से वर्णन तथा प्रकृति-चित्रण है। भगवान महावीर के जन्म होने से पूर्व भारत वर्ष की धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों का चित्र स्पष्ट किया है। महाराज सिद्धार्थ के पराक्रम का वर्णन और महारानी त्रिशला देवी के रूप-सौन्दर्य का कलात्मक चित्रण किया है। त्रिशला देवी की सर्वांग छवि को चित्रित करते हुए महारानी का नख-शिख एवं शिख-नख वर्णन कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है, और अन्त में महारानी त्रिशला देवी के गर्भ में भगवान महावीर के गर्भस्थ होने का संकेत किया है।
दूसरा सर्ग--भगवान महावीर के माता-पिता
प्राणत नामक कल्प से च्युत होकर विक्रमीम संवत् 553 वर्ष पूर्व आषाढ शुक्ला षष्टी की मध्य रात्रि के समय कुण्डपुर में त्रिशला की कुक्षि में भगवान महावीर अवतीर्ण हुए। पूर्वजन्म में में स्वर्ग में अच्यतेन्द्र थे। महावीर के रूप में उनकी आत्मा की त्रिशला के गर्भ में स्थापना हुई। गर्भधारणा के समय कुबेर द्वारा रत्नवषां हुई।
1. असगकृत वदमान चरितम् की प्रस्तावना, पृ. 22 से उद्धृत ।
4R :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर